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Mar 17, 2009

Slum Dog Millionaire

अंतत: "Slum Dog Millionaire" देखने का समय मिला। देखने से पहले इस फ़िल्म के बारे मे पक्ष विपक्ष की बहुत सी दलीले मेरे सामने थी। पर उन दोनों को दरकिनार करके रखा जाय तो यही कह सकती हूँ की फ़िल्म औसत है, न बहुत बुरी न बहुत अच्छी। ले देकर हाशिये के पार जो जीवन है उसे एक बड़े कोलाज़ मे समटने का प्रयत्न कुछ हद तक सफल है। दंगे है, क्रूर स्कूली सिस्टम, चोरी-चकारी की जीवन मे ज़रूरत,ऐसे ही कई किस्से है। । इस मायने मे ये फ़िल्म कुछ हद तक डोमिनिक लापियर की "Five Past Midnight in Bhopal" की याद दिलाती है, पर उस स्तर की संवेदना और गरिमा के साथ हाशिये के जीवन को नही दिखाती।

बोलीवुड की तर्ज़ पर कहे तो अमिताभ की दीवार के ज्यादा करीब है, अगर गाना बजाना छोड़ दिया जाय। एक सवाल जिसके ज़बाब का सीधा तारतम्य दिखायी नही देता वों है, नायक की जानकारी रिवाल्वर के आविष्कार कर्ता के बारे मे। रिल्वाल्वर का होना और उससे जुडी ऐसी जानकारी का बिना पढ़े-लिखे, सीधा सम्बन्ध थोडा टेढी खीर लगता है। दूसरा एक सीन मे नायक अपना नाम कम्पूटर पर टाइप करता हुया दिखता है, और दूसरी जगह न लिख-पढ़ पाने का क्लेम है। जो तकनीकी के पॉइंट से ये कुछ मेल नही खाता।

बाकी भारतीय संस्कृति या भारत को खासतौर पर फ़िल्म मे जैसे दिखाया गया है, उससे मुझे कोई आपत्ति नही लगी। एक कहानी और हाशिये पर खडे बच्चों की नज़र से जो भारत दिखता होगा, कुछ कुछ ऐसा ही होगा, और इस लिहाज़ से कहानी के साथ उसकी लय है। वैसे भी भारत जैसे विविधता लिए देश को किसी एक कहानी , एक फ़िल्म, या एक दिमाग मे कैद कर पाना मुश्किल है। यहाँ एक साथ कई सदियाँ है। और किसी भी कहानीकार या फिल्मकार से ये उम्मीद करना की वों पूरे भारत को समेटे एक मुश्किल और कभी पूरी न होने वाली आशा है, और ये कतई ज़रूरी नही है। दुसरा हम जो है, वों है, एक कहानी , एक फ़िल्म , हमारी किस्मत नही बदलने वाली है।

6 comments:

  1. आपकी समीक्षा अच्छी लगी ।

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  2. त्थ्य परक समीक्षा. अच्छी लगी. आभार..

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  3. अभी तक फिल्‍म देखना संभव नहीं हुआ है. ऊबाती है, बहुत सारे म्‍यूजिक वीडियो हैं उनकी याद दिलाती है, हिन्‍दी फिल्‍मी सीढ़ी पर खड़ी कोई फिल्‍म हमें क्‍या देश और दुनिया समझायेगी, जय हो-जय हो का एक बेतुका गान ही सुनायेगी, आप भी चपेटे में आ गयीं देख-पढ़कर मन ज़रा दुखी हो रहा है.

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  4. मैंने इस फिल्म के विरोध में अपने ब्लॉग चित्रपट पर लिखा था और आज भी इसके विरोध में खड़ा हूँ,सिर्फ इसलिए कि इसे स्लम की ज़िन्दगी की सच्ची तस्वीर बनाने का ढोंग न किया जाये. यह विशुद्ध मसाला फिल्म है और वही रहेगी.

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  5. "यही कह सकती हूँ की फ़िल्म औसत है"- आपकी बात से पूर्णतः सहमत पर ज़्यादातर लोग तो या इस फिल्म के दीवाने हो गए या फिर गुस्से से आग-बबूला और कुछ दर्शक बहुत दुखी. आपने फिल्म की खामियां भी खूब पकड़ी.
    मैंने ये लिखा था-
    http://mera-prayas.blogspot.com/2009/02/slumdog-millionaire-mumbai.html

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  6. दुःख है कि मेरी असहमति आप और रीम जी से है -यह फिल्म औसत तो कतई नही है यह दृष्टिकोण के सापेक्ष्य या तो बहुत अच्छी है या बहुत ही घटिया ! मगर मेरी एक पीडा और है कि मैं अभी तक यह भी निर्णय नहीं ले सका कि बाद की दोनों श्रेणियों में से इसे किसमे रखूँ -तब तक चलिए औसत वाली श्रेणी में रीमा जी से ही "पूर्णतः " सहमत हो लेता हूँ !

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