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Apr 25, 2009

छद्मनाम की परम्परा और ब्लोग्गेर्स के लिए पहेली

घुघूती जी ने छद्मनाम से लिखने पर एक बेहतरीन पोस्ट लिखी है।
परन्तु छद्मनाम से लिखने की परम्परा पुरानी और हिन्दी और संस्कृत मे तो और भी ज्यादा पुरानी है।
जरा इन नामो पर गौर फरमाए और बताये की इन लेखको/साहित्यकारों का असली नाम क्या था?

१। कालिदास
२। तुलसीदास
३.मुंशी प्रेमचंद (नबाबराय)
४। घाघ
५। सुमित्रानंदन पन्त
६। निराला
७। अज्ञेय
८। मुद्राराक्षस
९। अश्वघोष
१०। महाकवि भृत हरी
११। बाण भट्ट
१२। राहुल सान्कार्तायन

15 comments:

  1. aap ka naam bhi hna chahiyae thaa 8 number par

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  2. भई कालिदास और घाघ के मूल नामों का तो नहीं पता ।
    इस बारे में आप ही टॉर्च दिखाईये ।
    लेकिन बाक़ी नाम इस तरह हैं
    तुलसीदास---रामबोला
    मुंशी प्रेमचंद---धनपत राय
    सुमित्रानंदन पंत--गुसाईं दत्‍त
    निराला--सूर्यकांत त्रिपाठी
    अज्ञेय--सच्चिदानंद हीरानंद वात्‍स्‍यायन

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  3. सब के सब उन्मुक्त स्वप्नदर्शी ई-स्वामी टाइप के अनामदास हिन्दी ब्लॉगर थे :)।
    सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन - अज्ञेय
    सूर्यकान्त त्रिपाठी
    प्रेम चन्द तो धनपत राय थे,
    बाकी का नही पता!

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  4. घुघूती बसूती जी का लेख पढ़ा.छद्म नमों से लिखने की दुनिया भर मे पुरानी रवायत है.वह लेखक का अपना रखा हुआ नाम होता है और सभी पाठक जानते है कि यह नाम अमुक लेखक का अपना दिया नाम है.मगर ऐसे लोग कम होते हैं. आज समस्या यह है कि ब्लोगर्स मे वह जमात बहुतायत मे काम कर रह्री है जो 'एनोनिमस नोरिप्लाई' करके अपने असली रूप मे न आकर छिपकर असभ्य
    भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं.जिसे आप गाली दे रहे हैं, उसने भी तो अपने असली नाम से
    पोस्ट डाली है तो आपमे हिम्मत है तो अपने असली नाम से तिप्पनी करें,क्योकि अभिव्यक्ति की आज़ादी तो सभी को है.

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  6. प्रेमचंद का असली नाम धनपतराय था। बाकियों का पता नहीं।

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  7. मैं हिन्दी और अंगरेजी दोनों भाषाओं से सम्बद्ध रहने के कारण दोनों भाषाओं के चिट्ठों पर निगाह रखता हूँ | कभी कभी ऐसा लगता है कि हिन्दी ब्लॉगजगत में विचार से अधिक व्यक्ति को महत्त्व है| प्रारंभ में (२००६ के आस पास) ऐसा होना लाजिमी था क्योंकि उस समय हिन्दी चिट्ठे नए नए थे, लेकिन अब भी हम चिट्ठों को उनके लिखने वालों के परिचय के आधार पर ही ज्यादा जानते हैं| इसके अपने फायदे हैं लेकिन देखना होगा कि लांग टर्म में ये हिन्दी ब्लॉगस को किस दिशा में ले जाता है| देखना होगा कि आने वाले समय में चिट्ठों पर व्यक्तिगत जान पहचान की प्राथमिकता नए विचारों/विमर्श को किस प्रकार प्रभावित करेगी | ठीक यही बात टिप्पणी पर भी लागू होती है, टिप्पणी के फेर में कभी कभी या अक्सर ब्लागिंग का मूल रूप प्रभावित होता दीखता है|

    हिन्दी ब्लॉग जगत में एक ऐसी ही जिद ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से बहस/विमर्श करने की भी है| मेरी नजर में ब्लॉग का मूल स्वरूप किसी बहस (टिप्पणी के माध्यम से) के लिए उपयुक्त नहीं है| देखा भी है कि शास्त्रार्थ का नाम तो होता है लेकिन विमर्श एक तरफा ही होता है|
    खैर इस विषय पर ज्यादा लिखने से विषयांतर हो जायेगा तो इस पर फिर कभी लिखेंगे|

    पिछ्ले कई वर्षों से हिन्दी ब्लाग्स में "उन्मुक्त" छद्मनाम से अपना चिटठा लिखते हैं, उनके चिट्ठे पर उनकी या उनके परिवार के बारे में किसी भी जानकारी नहीं देखी जिससे उनकी पहचान हो सके, इसीलिये आप छद्म नाम से भी सफल ब्लॉगर हो सकते हैं|

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  8. आप ने बहुत सी पहेलियाँ एक साथ पूछ ली हैं। इन में कालिदास, घाघ और पंत जी के नाम तो मुझे भी पता नहीं हैं।

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  9. वास्तव में यह छ्द्मनाम होते हुए भी छ्द्म नाम नही कहे जा सकते।क्योंकि इन नामों के साथ इन का परिचय वास्तविक है। इन्हें उपनाम की श्रैणी मे रखा जा सकता है।

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  10. हाहा, आपने क्या सही पकड़ा है!अब क्या मित्र कहेंगे कि इनके लेखन को बहुत ऊँचा रेट नहीं करेंगे?
    वैसे इस समय तो एक का भी तथाकथित आसली नाम याद नहीं आ रहा।
    घुघूती बासूती

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  11. भाई हम तो इन नामों को देखकर ही चकरा गये हैं. अब इनका नाम क्या बतायें?

    रामराम.

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  12. Thanks to you all, to find time for reading and commenting on this blog post.

    Thanks a lot Mr. Yunus for answering part of the paaheli.


    The purpose of this post was to suggest alternative thoughts. Otherwise some people approach large issue of life with prejudice determinism.

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  13. आप सब का इस पोस्ट को पढने और कमेन्ट कराने के लिए धन्यवाद। युनुस जी का खासतौर पर उनके सही उत्तरों के लिए। इस पोस्ट का मकसद अपने ब्लोगेर समुदाय से एक विनम्र निवेदन था की चीजों को, नज़रियों को और सवालो को कुछ सरल २ मिनिट मेग्गी-नूडल टाईप के समाधानों से हल करने का हठ छोड़ दे। अगले महीने तक देखे की क्या ज़बाब पूरे आ पाते है?

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  14. नीरज जी, मैं अपने विचारों के लिये पहचाना जाना चाहता हूं न कि अपने परिचय से। हमारे देश में परिचय विचारों पर परत डाल देते हैं। इसलिये छ्द्मनाम से लिखता हूं। मुझे तो नहीं लगता कि इस तरह से लिखने में कोई दोष है।

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