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Dec 17, 2009

जीवन: क्या बनोगे तुम?

जिज्ञासावश नहीं आता सवाल कि बच्चे क्या बनोगे तुम? सवाल हमेशा मुखर हो ये ज़रूरी नहीं, सवाल का उत्तर भी ठीक-ठीक मिले ये भी ज़रूरी नहीं। ज़रूरी जो है वों है उसका ज़बाब जो बिन ज़बान, चुपके से, चालाकी से उकेर दिया जाता है, कोमल कोरे मन की तहों पर अचानक से खिलानों के बीच खेलते हुए, किसी रंगीन लुभावनी किताब को पलटते हुए, सीधे-सीधे नहाकर कपडे पहनते हुए भी, एक बड़े की आशीष के बीच, कि कुछ एक होने के लिए, कुछ एक बनने के लिए ही है जीवन!


क्या बनना है बच्चे को? बच्चा अभी कहाँ जान पायेगा कि ये कुछ एक बनने की लहरदार सीढ़ी, चुनाव और रुझान से ज्यादा, कब एक जुए की शक्ल ले लेगा, जो भाग्य, भविष्य, और बदलते बाज़ार की ज़रुरत के दांव से खेला जाएगा। बच्चा दूसरे के देखे सपने में अचानक दाखिल होगा, कभी एक डॉक्टर बनकर दिन भर घिरा रहेगा, बीमारी, बेबसी, और व्यापार के बीच। कभी एक डेंटिस्ट की शक्ल में अपने ८-१० घंटे बिताएगा, सड़े दांतों, और बदबू मारती साँसों के बीच। कभी एक बेबस-फटेहाल, टीचर की शक्ल में जो अपने जीवन के सबसे ज़रूरी पाठों को पढने से रह गया। कभी नींद में बौखलाए पायलेट की तरह, जिसका जीवन एक रुकी हुयी, ख़त्म न होने वाली, बिन मंजिल की यात्रा में बदल गया है। कभी किसी एयरहोस्टेस की शक्ल में, जिसके लिए हवाई उड़ान के रोमाच और ग्लैमर की ठीक बीचों बीच जूठी प्लेटों के ढ़ेर में है जीवन। कभी इन्ही सपनों में दाखिल होंगे निर्वासित वैज्ञानिक और इंजीनियर, जो एक लम्बी दिमागी कसरत के बाद बस हाथ बनकर रह गए है, और जिनका दिमाग भी हाथ का ही विस्तार है, कुछ ज्यादा कठिन कसरतों के लिए, ये दिमाग एक बंद खांचे से बाहर, जीवन से ज़िरह के लिए नहीं है, सवाल के लिए नहीं है, एक प्रोजेक्ट से दूसरे को बिन रुके निपटाने के लिए है। कभी आयेगा किसी दूसरी शक्ल में एक पत्रकार के लिए, टीवी पर लहकते-बहकते लड़के लड़कियों के लिए, और भी कई शक्लों में आयेगा उन सब बच्चों के जीवन में जिनसे बड़े लाड से कभी पूछा जाता रहा, कि क्या बनोगे बच्चे?

1 comment:

  1. एक फिल्म कितने लोगों के सहयोग से बनती है,फिल्म के शुरू या अंत में उनके नाम भी आते है,ऐसा सुना है की हर वो व्यक्ति जो किस न किस रूप में फिल्म में योगदान दे रहा है,मुंबई हीरो बनने के लिए आया था...चाहे वो माने या न माने / हर पिघला हुआ लोहा engine बनाना चाहे तो भी यह संभव नहीं ...किसी को handle तो किसी को paddle का काम करना ही है...चाहने और होने में शायद यhi फर्क है...man proposes..god disposes..........

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