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Apr 20, 2010

बुरांश के कुछ और रंग





करीने लगी कोई क्यारी
या सहेजा हुआ बाग़ नहीं होगा ये दिल
जब भी होगा बुराँश का घना दहकता जंगल ही होगा
फिर घेरेगा ताप,
मनो बोझ से फिर भारी होंगी पलके
मुश्किल होगा लेना सांस
मैं कहूंगी नहीं सुहाता मुझे बुराँश,
नहीं चाहिए पराग....
भागती फिरुंगी, बाहर-बाहर,
एक छोर से दूसरे छोर
फैलता फैलेगा हौले हौले,
धीमे-धीमे भीतर कितना गहरे तक
बुराँश बुराँश ...

7 comments:

  1. beautiful pics....are they all Azalea? U know whenever my mom and mother-in-law visit US, they always talk about the similarity of fruits and flora here to the ones in Pahad!

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  2. बहुत अच्छी कविता और उतनी ही अच्छी तस्वीरें। मुझे तो पता ही नहीं था कि बुरांस इतने रंगों में होते हैं। जब-तब इन्हें देखा है, घूमते-टहलते एक-दो कविताओं में भी ये चले आए हैं, लेकिन दिमाग में इनकी तस्वीर लाल रंग वाली ही है।

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  3. कितने सुंदर फूल हैं। बुरांश का फूल मैंने रानीखेत में देखा है। वैसे तो अगला-पिछला जन्‍म कुछ होता नहीं, फिर भी लगता है कि पहाड़ों से मेरा पिछले जनम का कोई नाता है। पहाड़ और पहाड़ों से जुड़ी हर चीज हमेशा अपनी ओर बुलाती है। मेरा बस चले तो सबकुछ छोड़ छाड़ पहाड़ों पर ही बस जाऊं।

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  4. "बहुत ही सुन्दर फूल...."

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  5. इतने रंगों में बुरूंश/बुरांश!

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  6. सुन्दर रचना। फूल तो वाकई जानलेवा हैं

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