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Apr 7, 2011

फूल---------गोरख पांडे

 बसंत है, बहार है, और दुनिया भर में बदलाव के सपने सर उठाये हुए है, बोराये हुए है, गोरख पांडे की प्यारी सी कविता फूल शायद इन्ही दिनों के लिए लिखी है................


फूल हैं गोया मिट्टी के दिल हैं
धड़कते हुए
बादलों के ग़लीचों पे रंगीन बच्चे
मचलते हुए
प्यार के काँपते होंठ हैं
मौत पर खिलखिलाती हुई चम्पई
ज़िन्दगी
जो कभी मात खाए नहीं

और ख़ुशबू हैं
जिसको कोई बाँध पाये नहीं
ख़ूबसूरत हैं इतने
कि बरबस ही जीने की इच्छा जगा दें
कि दुनिया को और जीने लायक बनाने की
इच्छा जगा दें.

-------------गोरख पांडे 

2 comments:

  1. समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई
    समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई

    हाथी से आई, घोड़ा से आई
    अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद...

    नोटवा से आई, बोटवा से आई
    बिड़ला के घर में समाई, समाजवाद...

    गाँधी से आई, आँधी से आई
    टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद...

    जब भी गोरख पाण्‍डेय का नाम सामने आता है, उनकी ये लोकप्रिय भोजपुरी कविता भी याद आ जाती है।

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