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Oct 27, 2012

ऊँचे आखिर कितने ऊँचे पेड़


पिछले 3-4 महीनों में  लगभग 2500 मील ड्राइव करते, रुकते, टहलते  अमरीकी वेस्ट कोस्ट को नज़दीक से देखने के मौके बने. 
इस यात्रा की  दूसरी क़िस्त ......

पहली क़िस्त 

U.S. Route 101


अगला दिन हरियाली, धुंध और कुछ  गरमी की महक के बीच बैंडन से  U.S. Route 101 पर क्रिसेंट सिटी की तरफ ड्राइव करते बीता, दिनभर एक तरफ प्रशांत महासागर का तट बना रहा,  दूसरी तरफ डगलस फर, चिनार, चीड़ और रेडवुड के घने जंगलों से ढकी छोटी पहाड़ियों-टीलों का अनंत विस्तार. पहले दो घंटे तक हर दृश्य को कैमरे में कैद करने का मोह बना रहा, फिर ये भी समझ आता कि  प्रकृति का  विहंगम, विराट रूप किसी भी तरह के कैमरे से कैद नहीं हो सकेगा,  इस सबके बीच होने का जो सुख है, वो लम्बे समय तक स्मृति में छाया की तरह रहेगा,  शायद कभी सपने में इस सुख की आवृति हो.  बचपन के हिमालय में बीते कुछ वर्ष जब-तब सपनों का दरवाजा खटखटातें  हैं, शायद प्रशांत महासागर की याद और इन घने जंगलों की याद भी किसी दिन हिमालय की याद के साथ मिल कोई भरम मेरे लिए खड़ा करती फिरे.

 शाम पांच बजे के आसपास  जिस होटल में रहने की व्यवस्था है, वहां चेकइन किया, होटल मालिक हिन्दुस्तानी मूल का व्यक्ति है, किसी तरह का अपनापा उसकी तरफ से हमें महसूस नहीं हुआ,  उसने हमारी साझी हिन्दुस्तानी पहचान तक को अक्नॉलेज तक नहीं किया, हमने भी अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की. कमरे में किचन और खाना बनाने के बर्तन, फ्रिज आदि है, जरूरत हो तो खाना बनाया जा सकता है, बालकनी के ठीक 100 कदम  की दूरी पर समुद्र तट है,   बच्चे  थकान के बाद, बाथरूम में ज़कूज़ी को लेकर उत्साहित हैं.  इस बीच बगल के कमरे में घंटे भर पहले एक पुंक/पंक   किस्म का जोड़ा आया है,  उसका होटल के मालिक से उसका झगड़ा होता दिखा, फिर पुलिस आयी, और मामला रफ़ादफ़ा हुया. सबकुछ के बीच कमरे में दो क्वीन बेड की जगह एक किंग बेड है,  शिकायत करने पर  होटल मालिक की बीबी आयी, और हिन्दी में बातचीत के साथ  एक फोल्डिंग बेड लगाने का ऑफर  देने लगी, हमने बिना न नुकुर के उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तो उसे तसल्ली मिली और फिर हालिया झगड़े का किस्सा बयान करने लगी. पता चला पुंक जोड़े ने दो कमरे बुक किये थे, जो  अगल-बगल नहीं मिले, दुसरे कमरे में वो 2-5 साल के बीच के दो बच्चे छोड़कर आये थे,   होटल मालिक ने इस पर आपत्ति जतायी, और पुलिस ने मालिक का पक्ष लिया, और वो लोग किसी दूसरी जगह की तलाश में निकले.  होटल की मालकिन  पाकिस्तान में पैदा हुयी हिन्दू है, जिसका परिवार सन 80 के आस-पास यहाँ आ गया था, और उसका मियाँ दिल्ली का पंजाबी है, रहन सहन बातचीत नैनीताल की तराई की कसी घरेलू पंजाबिन जैसा ही है, वैसा ही सहज अपनापा और बर्ताव भी.  जाते-जाते ये महिला अगले दिन के डिनर के लिए  कुछ सादा खाने का वादा और बच्चों को अपने बच्चों के साथ खेलने का निमंत्रण भी दे गयीं.  

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"रेडवुड नेशनल फारेस्ट " 


 कैलिफोर्निया राज्य में संरक्षित "रेडवुड नेशनल फारेस्ट "  के भीतर दुनियाभर में रेडवुड (शिकोया),  के सबसे बड़े जंगल हैं और दुनियाभर में  सबसे ऊँचें पेड़ भी हैं.   सड़क के किनारे ट्रेल में जाने के लिए जिस पेड़ के नीचे  अपनी कार खड़ी की है, उसके तने के सामने हमारी कार दूर से एक खिलौना नज़र आती है,  हम शायद चींटी! पता नहीं क्या होता है पेड़ होना? शायद देना ही इस विलक्षण जीव का स्वभाव है, फल, फूल, आश्रय, भोजन, सुरक्षा, ताप और छाया.  हवा , पानी , और इस पृथ्वी पर समस्त दूसरे जीवों के जीवन का आधार हैं पेड़....

जंगल के बीच गुजरते हुए जितनी उपर तक देखों दरख़्त ही दरख़्त और हरी-भूरी झिल्ली से झांकता आकाश, छन-छनकर आती सुनहली धूप.  नीचे मॉस, फर्न, हरी घास और सूखे गिरे पत्तों से ढकी हरियल जमीन,  ठंडी हवा में घुली ताजगी और पेड़ों की खुशबू.  मिट्टी सिर्फ रास्ते में दिखायी देती हैं,  नम मिट्टी में यदा-कदा कुछ पैरों के छूटे निशान,  कभी घंटे भर चलते हुए भी जंगल के बीच कोई नहीं दिखता, कभी  मिलते कुछ अजनबी लोग जो बिना हिचक, अपनी तस्वीर खींचनें का आग्रह करते हैं,  उनका कैमरा लेकर मैं कुछ क्लिक-क्लिक करती हूँ, फिर बाय-बाय, कभी किसी की तरफ अपना कैमरा भी बढ़ा देती हूँ, रास्ते पर अक्सर इतना ही संवाद.  बहुत कम लेकिन ये भी हुआ  कि 5-10 मिनट कुछ दूर तक बतियाते, जंगल के बीच अजनबी के साथ चलते रहे.  मेरा रवि  भागकर एक दुसरे रास्ते पर पहुँच गया है, और उसके पीछे-पीछे उसके पंकज. रोहन के साथ इन दरख्तों के बीच टहलते, अपने बचपन की कुछ याद साझा करते, बतियाते घंटा भर बीत गया फिर एक बड़े पेड़ की कोटर के भीतर मॉडलिंग करता, नाचता रवि मिला.  घने जंगल के बीच ऐसे कई पेड़ हैं, जो इतने पुराने और बड़े हैं की उनके तने का निचला हिस्सा पूरी तरह खोखला हो गया है, और जगह-जगह से टूट गया हैं, उनके भीतर 8-10 लोग खड़े हो सकते हैं, हम चारों लोग भी  इन प्राकृतिक घरों में खड़े होने का आनंद लिए कुछ देर को आदिमानव की अवस्था में को याद करते हैं, आखिरी तामाम जानवर, पशुपक्षी, आदिमानव और उसके पूर्वज सब लाखों सालों तक इन्हीं पेड़ों की शरण में रहे  हैं,


"सब्ज़:-ओ-गुल कहाँ से आये हैं , 
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है ".... 


सहज सवाल मन में उठता है  ऊँचे आखिर कितने ऊँचे पेड़ .....
 चीड़, देवदार, डगलस फर, साइकेड्स, गिंको की तरह  रेडवुड (शिकोया) भी जिम्नोस्पर्म समूह का सदस्य है, और दुनिया में सबसे ऊँचे वृक्षों  में इस  जाति के वृक्ष भी शामिल हैं.  जिम्नोस्पर्म ठन्डे, शुष्क इलाकों में उगने के लिए अनुकूलित पेड़ हैं.  जिम्नोस्पर्म की उत्पत्ति फर्न जैसे पूर्वज से हुयी है, परन्तु पूर्णरूप से स्थलजीवी जीवन के लिए जरूरी सामर्थ्य इन पौधों के भीतर क्रमिक विकास के इतिहास में पहली बार पनपी; जैसे जमीन की गहराई से पानी सोखने वाली जड़,  हवा में  दूर तक बह सकने वाले हलके परागकण और बिना फल वाले बीज (अनावृतबीजी या जिम्नोस्पर्म) और विकसित वास्कुलर सिस्टम. परागण और बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में इन पोधों ने जल की बजाय हवा का सहारा लिया और जमीन की गहराई से पानी सोखने वाली जड़ ने संभव बनाया कि ये पौधें अपेक्षाकृत सूखी जमीन पर उग सकें.  विकसित वास्कुलर सिस्टम जड़ों द्वारा सोखा हुया पानी और पत्तियों द्वारा फोटोसिन्थेसिस की प्रक्रिया में बना भोजन पोधे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचाता हैं.  वास्कुलर ट्रांसपोर्ट सिस्टम  और गहरी जड़ों की वजह से ही ये संभव हुया कि मॉस और फर्न की तरह ये पेड़ जमीन की सतह पर मौजूद नमी पर आश्रित नहीं रहते, और गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में बिना किसी भी तरह की ऊर्जा खर्च किये पानी पेड़ के शीर्ष तक पहुंचा देतें हैं,  पेड़ ऊँचे-ऊँचे और बहुत ऊँचे होते चले जातें हैं.  चूँकि उंचाई के साथ लगातार पत्तियों की  संख्या और आकार छोटा होता जाता है, और ये पत्तियां कम भोजन बना पाती है, अत: एक सीमा के बाद जब पेड़ के लिए गुरुत्त्वाकर्षण के विपरीत दिशा में  शीर्ष तक पानी पहुँचाना, फायदेमंद नहीं रहता, पेड़ का बढ़ना रुक जाता है, वर्तमान में दुनिया का सबसे ऊँचा पेड़, तकरीबन 113 मीटर लम्बा इन्हीं जंगलों में है. वैज्ञानिकों के अनुमान और पेड़ों की लम्बाई के पुराने रिकॉर्ड यही बतातें हैं कि  भरपूर उर्वर जमीन और आदर्श परिस्थिति में पेड़ की उंचाई 122 से 130 मीटर तक पहुंचती है. ये पेड़ कई सौ वर्षों से लेकर ४-५ हज़ार वर्ष तक जीवित रहतें हैं.

यूँ तो रेडवुड ऑरेगन और वाशिंगटन राज्य में भी हैं, परंतु इन राज्यों में बहुत ज्यादा जंगल-कटान के बाद, फिर नए सिरे से मैनेज्ड फोरेस्ट्री की नीती के तहत अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ने वाले चीड़, डगलस फर, चिनार, पोपलर आदि को उगाया गया हैं, रेडवुड के छोटे झुरमुट और जगह-जगह उगे एकाधि पेड़ ही यहाँ नज़र आते हैं. अकेले उगे रेडवुड या किसी भी दूसरी जाति के पेड़ अपनी पूरी उंचाई प्राप्त करने से पहले ही टूट जाते हैं, भरपूर ऊँचाई तक पहुँचने और बचे रहने के लिए पेड़ों का चारों ओर से बड़े पेड़ों से घिरे रहना ज़रूरी हैं.  यहाँ  दुनिया के सबसे ऊँचे पेड़ों का बचा रहना भी इसीलिए संभव हुआ है क्यूंकि सैकड़ों मील के विस्तार में फैले जंगल बचे रह गए और समय रहते ही इन्हें संरक्षित करने की पहल हो सकी.......



Oct 22, 2012

आस मेरे मन की दिशा

पिछले 3-4 महीनों में  लगभग 2500 मील ड्राइव करते, रुकते, टहलते  अमरीकी वेस्ट कोस्ट को नज़दीक से देखने के मौके बने. 
इस यात्रा की पहली क़िस्त ....


आस मेरे मन की दिशा

आठ महीने की बारिश, धुन्ध, और सर्दी के बाद,  अब गरमी के लम्बे, उजास भरे दिन आयें हैं.  हालाँकि जून का महीना है, पर हवा में खुनकी है, पतला  स्वेटर पहनने की दरकार अब तक  बनी हुयी  है. बच्चों के स्कूल बंद हो गए हैं और समर कैम्प शुरू होने में दस दिन का समय है.  धूप और ताप की आस में कोरवालिस से दक्षिण की तरफ—कैलिफोर्निया जाना तय हुआ.


पांच घंटे की ड्राइव के बाद भी बारिश अब तक साथ लगी हुयी है, धूप का नामोनिशान नहीं है. रास्तेभर घने जंगलों के लैंडस्केप के बीच लकड़ी के बड़े बड़े टाल, आरा मशीने और कई जगह ड्रिफ्ट वुड के ढ़ेर के ढेर देखते आखिरकार शाम को बैंडन पहुंचे.  बैंडन प्रशांत महासागर के तट पर बसा एक छोटा सा कस्बा है.  हल्की ठण्ड के बावजूद यहाँ मौसम अच्छा  है.  तट पर 2 मील लम्बा डेक है, जिसपर  'ड्रैगन, समंदर और लाइट हॉउस' की थीम पर बनायी स्कूली बच्चों की पेन्टिंग्स लटकी है, वोटिंग कल तक जारी रहेगी.  सामने तीन छोटे रेस्टोरेंटस  में समन्दर से सीधे पकड़े  हुए मसल्स, क्रेब्स, सालमन मछली के व्यंजन बिक रहे हैं,  एक काउंटर पर आठ डॉलर में मछली पकड़ने का लायसेंस मिल रहा है,  डेक पर कई मछलीमार भी हैं.  कुछ दूरी पर पोर्ट ऑफिस है, अतीत की छूटी हुयी निशानी, एक गवाह कि उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के शुरुआती दशकों में ये  तटवर्ती क़स्बा,  एक महत्तवपूर्ण पत्तन था.


इस बाज़ार में हाथ से बने काठ के खिलोनों की दूकान मिल जाने पर मेरे बच्चे खुश हैं और दुकानदार के साथ रंग-बिरंगी  चिड़िया और दुसरे खिलोनों को देखने में मशगूल हैं.  सिर्फ एक ही चिड़िया लेने की ताकीद है, तो बार बार पलट पलट कर दोनों भाई सलाह कर रहे हैं.  हमारी एक पड़ोसन बसंत के आते ही अपने घर की चारदीवारी पर इसी तरह की रंग-बिरंगी  चिड़िया टांग देती हैं, हवा से इनके हिलते पंख, बच्चों के लिए पिछले 3 वर्षों से विशेष आकर्षण हैं.  इस तरह की चिड़िया मुझे लोकल मार्किट में कहीं नहीं दिखी, एक दिन पूछने पर पता चला कि बैंडन के बाज़ार में एक छोटी सी दूकान में बिकती हैं.  अमेरिकी लोकल बाज़ार में, इस तरह की अच्छी कारीगरी के खिलोने मिलना अच्छी बात है, जो  वालमार्ट टाईप सुपरस्टोर के  मॉस प्रोडक्शन से अलहदा हैं. 


बच्चे एक लाल चिड़िया लेकर लौटे हैं.  कोई बड़ा होटल, बड़ी दूकान इस बाज़ार में नहीं है.  बैंडन की ये हमारी दूसरी यात्रा है, दो बरस पहले यहाँ कैम्पिंग के लिए आये थे और एक दिन समुद्रतट पर बिताया था. इस दफे यहीं बाज़ार में एक मोटेल में दो दिन रुकने का इंतजाम है, जिसे एक मियाँ-बीबी चलाते हैं, अपने घर के निचले हिस्से के कमरों को उन्होंने किराए पर उठाया हैं, और खुद दुमंजिले में  रह रहे हैं, किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो उन्हें घंटी बजाकर बुलाया जा सकता है. इस तरह के इंतजाम में, एक अनजान शहर में रुकने का ये हमारा पहला अनुभव अच्छा रहा.   

अगला उजला दिन समंदर किनारे ड्राइव करने और जगह-जगह रुकते-टहलते बीता.  साफ़ रेतीले तट  से कुछ सौ मील की दूरी पर विशालकाय खड़ी चट्टानें या इनके समूह दिखतें हैं,  जो समुद्री पक्षियों के लिए आदर्श शरणस्थल हैं, अंडे और चूजे चट्टानों पर सुरक्षित रहते हैं, और चारों तरफ पानी में आहार प्रचुर मात्रा में मौजूद है. एक स्पॉट पर पार्क रैंज़रस की दूरबीन इस बीच रेत में घोंसला बनाने वाली एक छोटी सी चिड़िया स्नोवी प्लोवर पर केन्द्रित  है. पानी और आकाश के बीच विस्तार में उड़ते अनगिनत पक्षी. मेरे दोनों बच्चे पक्षियों को पहचानने और उनकी गिनती में अपनी तरह से मशगूल हैं, स्कूल से मिली नयी नयी छूट्टी को लेकर उल्लास हैं.



ऑरेगन का तट भुरभुरी रेत का बना हुया है और प्रशांत महासागर के पूरे तटवर्ती क्षेत्र में यहीं सबसे कम  चट्टाने हैं,   जिसकी वजह से यहाँ कई छोटे पत्तन बने, और बीसवीं सदी के कई दशकों तक यहाँ जहाजों की आवाजाही बनी रही.  पानी में खड़ी , काली सलेटी चट्टानें, सर्दी के महीनों में घने कोहरे के बीच अदृश्य हो जाती हैं,  और लहरों के  वेग और तेज हवा के बीच जूझते, जहाज़ बहुधा इन चट्टानों से टकराकर क्षतिग्रस्त हुये हैं,  इस क्षेत्र  को  "Graveyard of the Pacific." भी कहा जाता है.  वर्ष १७९२ से लेकर अब तक लगभग २००० से ज्यादा बड़े जहाज़ इन चट्टानों से टकराकर क्षतिग्रस्त हुये हैं, उन्नीसवीं  सदी के अंत में कई लाइट हॉऊस बनें, ताकि जहाजों को दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया जा सके .  लाईट हॉऊस में अक्सर एक परिवार रहता जो करोसीन के लेम्प को रात भर रोशन रखने की ज़िम्मेदारी उठाता था. पिछले ३०-४० सालों में अब लाइट हॉऊस की कोई उपयोगिता नहीं बची, तो ये बंद हो गयें और इनमें से कुछ पर्यटन के लिए या  कुछ बच्चों के मनोरंजन के वास्ते पार्क का हिस्सा हैं.

प्रशांत महासागर के भीतर इसके थपेड़ों को झेलने का मेरा एक ही अनुभव है. दो बरस पहले व्हेल मछली को नज़दीक से देखने की  लालसा में  एक ट्रॉलर  में तीन घंटे गुजारे थे. ज़रा सी देर को ट्रॉलर  रुकता या इसकी गति धीमी होती, समन्दर की तेज़ लहरे उसे सूखे पत्ते की तरह कई फीट उछाल देती.  कुल मिलाकर कई दफे ऎसी स्थिति बनी कि शायद आखिरी दिन हो जीवन का, कुछ पलों के लिए समंदर के अप्रितम सौन्दर्य, वैभव,  के बीच प्रकृति की क्रूरता और अपने अदनेपन, असहायता का तीखा बोध तारी हुआ.  मेरे पति पूरे समय डेक पर उल्टियां रोकने की कोशिश करते रहे और मैं दो छोटे बच्चों के बीच घिरी केबिन में ही बैठी रही, दो बार खिडकी के बहुत पास से व्हेल मछली की छलांग हम देख सकें,  तकरीबन 10  मिनट के लिए डेक पर जाना हमारे लिए भी संभव हुआ.  डेक पर बच्चों ने दो क्रेब पकड़े फिर वापस पानी में फेंक  दिए . व्हेल, क्रेबस और ट्रोलर की याद बच्चों के मन में बहुत दिन तक खुशी बनकर रही, मेरे मन में सांत्वना बनकर... 
'बुलॉर्ड  स्टेट बीच' के कोने में बने  बैंडन लाईट की छोटी-संकरी सीढीयाँ चढ़कर लाईटहॉऊस की ऊपरी मंजिल तक पहुंचती हूँ, पूरा  तीन सौ साठ के कोण पर नज़र जाती है, 100 मीटर की दूरी पर एक दूसरा लाइटहॉऊस का होना अजीब लगता है.  टूरिस्ट गाइड ने 100 मीटर की दूरी पर बने दूसरे लाईटहॉउस का किस्सा कुछ यूँ  बयाँ किया "1910 के आस-पास किसी तूफानी रात में एक जहाज तट से सिर्फ सौ मीटर की दूरी पर एक चट्टान से टकराया. रात के समय जल्दबाजी में जहाज त्यागकर सब लोग एक चटान पर आ गए, सुबह पता चला की ये टक्कर समंदर के बीच  न होकर तट के बहुत  नज़दीक हुयी थी, जहाज को बचाया जा सकता था."  अंधेरी रात में कई महीनों के सफ़र के बाद थके और भ्रमित कप्तान की अवस्था का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. प्रकृति के विराट वैभव के बीच छिपी भयंकर क्रूरता का गवाह टूटे, दुर्घटनाग्रस्त जहाजों का म्यूजियम पास ही है.  एमिलिया एयरहार्ट समेत प्रशांत महासागर कितने जाँबाजों की कब्रगाह है?