श्याम बेनेगल की कोमेडी फ़िल्म "वेलकम टू सज्जनपुर" मेरी राय मे पिछले कुछ सालो मे बनी हंसोड़ फिल्मो मे बेजोड़ है। बड़ी बखूबी से बुने ताने-बाने एक बड़ा रंगमच तैयार करते है, और व्यवस्था पर कटाक्ष भी बड़ी आसान से हो जाता है। फिलहाल काफी मज़े की है और देखने वाला कई बार हंसते-हँसते कुर्सी से गिर सकता है। इसीलिये सावधानी बरते!!
पूरी फ़िल्म का सूत्रधार एक गाँव का पढा-लिखा बेरोजगार युवक है जो गाँव लौटकर लोगों के लिए चिठ्ठी लिखने का धंधा करता है, और उसी के ज़रिये कई लोगों के जीवन मे झांकने का अवसर दर्शको को मिलता है। एक दृश्य यहाँ से लिया गया है। परम्परा , राजनैतिक गुंडागर्दी , के बीच दो-तीन प्रेम कहानीया है, और मोबाइल फ़ोन और किडनी के व्यापार का नया तकनीकी पहलू भी है, जो इस जमीन से जुड़ गया है।