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Aug 27, 2009

गांधी नेहरू और जिन्ना के बहाने: हिन्दी-पाक ब्लॉग

चूँकि जिन्ना आजकल सबके जहन मे छाए है और तरह तरह के कयास जिन्ना को महान या फ़िर ज़नूनी, साम्प्रदायिक , सेकुलर बताये जाने के हो रहे है। ये मुगालता भी अच्छा है की सिर्फ़ राजनैतिक नेता इंडिया-पाकिस्तान की दुश्मनी का कारण है, और जनता का इससे कुछ लेना-देना नही है। हालाकि हकीकत कुछ और भी है। हम जिन्ना साहेब के आगे गांधी नेहरू को खारिज करने को तैयार है। और पाकिस्तानी ब्लोगर्स की सदाशयता पर नज़र डाले यहाँ

मेरे लिए जिन्ना की कहानी एक सेकुलर से फेनेटिक बनने का सफ़र है। व्यक्तिबोध जो भी हो, इसका सामाजिक मूल्य ये है की इस प्रक्रिया को समझा जाना चाहिए कि कैसे एक रोशन ख्याल इंसान साम्प्रदायिकता, के अंधेरे कुंए मे गिर पड़ता है?

ये सिर्फ़ जिन्ना का सवाल नही है, ये सवाल हमारे रास्ट्र्गीत लिखनेवाले "इकबाल" पर भी लागू होता है, कि "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" लिखने वाला कैसे और क्यों पाकिस्तान की अवधारणा का जनक बन गया? इकबाल ही जिन्ना को भी मुस्लिम लीग मे लेकर आए थे।
पाकिस्तान बनाने के ज़नून के साथ जो हिन्दुस्तान के भविष्य का भी कुछ खाका इकबाल के दिमाग मे रहा होगा, क्योकि उन्हें भविष्य वक्ता के तौर पर भी जाना जाता है, अगर इकबाल ने अफगानीस्तान, रूस और इरान की राजनैतिक उठापटक की भविष्य वाणिया की थी तो हिन्दुस्तान का कैसा कयास था उनके मन मे? क्या कई जाती, भाषा, बोलियों और क्षेत्रीयता मे बंटे हिन्दुस्तान का भविष्य वों इसके कई टुकडो मे टूटने मे देखते थे? और उसके मुकाबिले, पाकिस्तान, जिसे वों एक धर्म, एक विश्वास , और एकांगी संस्कृति के आधार पर बनाना चाहते थे, उसका भविष्य उन्हें ज्यादा उज्जवल दिखाई देता था? पाकिस्तान की सामरिक भोगोलिक स्थिति, और हिन्दुस्तानी मुसलमानों को "ग्रेट इस्लामिक भूभाग का हिस्सा बनाना, और उसमे नेत्रत्व की भुमिका मे देखना शायद इकबाल का सपना था, इस तरह का कुछ आभास मुझे इकबाल की उर्दू शायरी पढ़ने वालो से मिला। मेरे लिए इकबाल को पढ़ना मुमकिन नही है कम से कम जिस भाषा मे उन्होंने लिखा। हाल ही मे विवादित चीनी राजनीतिज्ञों ने भी आज के भारत की और भारत के राजनैतिक भविष्य का, उसे कई टुकडो मे बांटने का जो खाका बनाया है, वों काफी कुछ १०० साल पहले इकबाल के बनाए हुए खाके से मिलता है
और पिछले दो दशक मे भारतीय राजनीती, का विकेन्द्रीयकरण तो हुया, पर जाती, धर्म और क्षेत्रीयता के आधार पर हुया है। और बार -बार की ये बंदरबांट हमारे राजनैतिक भविष्य पर कितना असर डालेगी, इस पर सचेत होने की ज़रूरत है।

क्या जिन्ना इधर और गांधी-नेहरू दूसरी तरफ़ , सिर्फ़ यही थे हिन्दुस्तान-पकिस्तान बनने वाले? पाकिस्तान बनने की वजह सिर्फ़ ये मान लेना कि वों प्रधानमंत्री नही बन पाये, इस समस्या का सरलीकरण होगा।
उस वक़्त वों लाखो हिंदू-मुसलमान जो एक दूसरे को मरने मारने पर तुले थे , दंगा, लूटपाट, और तमाम अमानुषिक अपराधो को अंजाम दे रहे थे, उसके लिए कौन जिम्मेदार था? गांधी-नेहरू की कई अपीलों के बाद भी ये दंगे, और अलग दो देशो की मांग नही रुकी? (जिन्ना के बारे मे मुझे नही मालूम कि उन्होंने दंगा ग्रस्त इलाको मे जाने की उस तरह की पहल की कि नही जैसे गांधी और नेहरू ने की थी?)। हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की आम जन मानस मे कितनी जगह थी? अगर इस कोण से सवाल पूछा जाय तो शायद विभाजन के सही कारणों तक पहुंचा जा सकता हैक्या हिंदू-मुस्लिम वाकई दूध मे पानी की तरह मिले हुए थे? और जिन्ना और नेहरू के आपसी टकराव ने उन्हें बाँट दिया? अंग्रेजो के ख़िलाफ़ भले ही सब एक मोर्चे पर सहमति बनाए हुए थे, पर हमारा अपना समाज आपस मे बँटा था, धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, क्षेत्रीयता के नाम पर भीआज़ादी के नेताओं मे से गांधी और अम्बेदकर को छोड़ कर किसने साहस किया इन संरचनाओं पर, इमानदारी के साथ प्रहार कराने का?

Aug 10, 2009

कुछ तस्वीरे हवाई से

पिछले महीने तकरीबन दस दिन हवाई मे बिताये, हवाई की यात्रा कई मायनों मे दिलचस्प रही, और कई तरह के मिले जुले कामो के बीच हवाई को फ़िर से देखने की और ज्यादा देखने की तमन्ना के साथ घर लौट आए है। फिलहाल कुछ तस्वीरे।



Aug 4, 2009

राखी का नकार और गहरा प्यार

कई साल पहले की बात है, मेरी उम्र करीब १२ साल और मेरे बड़े भाई की साल, बहन की साल, छोटे भाई की करीब तीन साल। मुझे रक्षा बंधन के त्यौहार मे अपनी उस उम्र की समझ मे भी कुछ अटपटा लगा, एक गहरा भेदभाव, कि बहने अपने भाई की लम्बी उम्र की प्रार्थना करे और भाई करे, और इसके बदले बहनों को कुछ रुपये दे दिए जाय। सो भाई का हाथ दाता का, भले ही माँ-बाप के रुपयों से और बहन का दीन/याचक का हो जाता हैदूसरा कुछ लड़कियों का खासकर महिलाओं का भी इस दिन हर ऐरे-गिरे को राखी बांधकर कुछ रुपये कमाना शगल बन जाता है। अफसरों की बीबिया खासतौर पर इस दिन सारे दलालों और ठेकेदारों की बहन बन जाती है। जब से होश है मुझे ये त्यौहार हमेशा एक गोरखधंधा ही लगा है।
खैर हमारे घर मे -१२ साल के बच्चो ने एक दिन मिलकर फैसला किया कि वों इस बेहुदे त्यौहार को भाई बहन के प्यार के नाम पर नही मनाएंगे। जब मेरी माँ थाल मे राखी और मिठाई सजा कर लाई तो मिठाई खा ली गयी, रुपये वापस कर दिए गए और राखी नही बंधी गयी। माँ ने हम सब को पहले डाटा जिसका असर नही हुया, फ़िर गुस्सा किया, फ़िर ललचाया और अंत मे रोने लगी। उसके बाद कई सालो तक यही कर्म चलता रहा, और फ़िर एक हकीकत बन गयी की मेरे भाई राखी नही बंधवाते, क्योंकि इसे वे बहन की अवमानना के रूप मे देखते है। और अडोस-पड़ोस की ढेर सी दूसरी बहनों को भी मेरी माँ पैसे दे कर विदा कर देती है, और राखी रख लेती है।
शादी के बात कई बार पिचले दस सालों मे मेरी सास ने भी कहा की भाईयों की भईयो को राखी भेज दो, पर नही भेजी। और अपने दिल मे हम सब भाई बहन जानते है कि राखी भेजने पर भी हमारा एक दूसरे के प्रति प्यार और एक व्यक्ति के तौर पर सम्मान , राखी के रिश्ते मे बंधे भाई बहनों से बहुत ज्यादा गहरा है।