कई साल पहले की बात है, मेरी उम्र करीब १२ साल और मेरे बड़े भाई की ८ साल, बहन की ५ साल, छोटे भाई की करीब तीन साल। मुझे रक्षा बंधन के त्यौहार मे अपनी उस उम्र की समझ मे भी कुछ अटपटा लगा, एक गहरा भेदभाव, कि बहने अपने भाई की लम्बी उम्र की प्रार्थना करे और भाई न करे, और इसके बदले बहनों को कुछ रुपये दे दिए जाय। सो भाई का हाथ दाता का, भले ही माँ-बाप के रुपयों से और बहन का दीन/याचक का हो जाता है। दूसरा कुछ लड़कियों का खासकर महिलाओं का भी इस दिन हर ऐरे-गिरे को राखी बांधकर कुछ रुपये कमाना शगल बन जाता है। अफसरों की बीबिया खासतौर पर इस दिन सारे दलालों और ठेकेदारों की बहन बन जाती है। जब से होश है मुझे ये त्यौहार हमेशा एक गोरखधंधा ही लगा है।
खैर हमारे घर मे ३-१२ साल के बच्चो ने एक दिन मिलकर फैसला किया कि वों इस बेहुदे त्यौहार को भाई बहन के प्यार के नाम पर नही मनाएंगे। जब मेरी माँ थाल मे राखी और मिठाई सजा कर लाई तो मिठाई खा ली गयी, रुपये वापस कर दिए गए और राखी नही बंधी गयी। माँ ने हम सब को पहले डाटा जिसका असर नही हुया, फ़िर गुस्सा किया, फ़िर ललचाया और अंत मे रोने लगी। उसके बाद कई सालो तक यही कर्म चलता रहा, और फ़िर एक हकीकत बन गयी की मेरे भाई राखी नही बंधवाते, क्योंकि इसे वे बहन की अवमानना के रूप मे देखते है। और अडोस-पड़ोस की ढेर सी दूसरी बहनों को भी मेरी माँ पैसे दे कर विदा कर देती है, और राखी रख लेती है।
शादी के बात कई बार पिचले दस सालों मे मेरी सास ने भी कहा की भाईयों की भईयो को राखी भेज दो, पर नही भेजी। और अपने दिल मे हम सब भाई बहन जानते है कि राखी न भेजने पर भी हमारा एक दूसरे के प्रति प्यार और एक व्यक्ति के तौर पर सम्मान , राखी के रिश्ते मे बंधे भाई बहनों से बहुत ज्यादा गहरा है।
"He is an emissary of pity and science and progress, and devil knows what else."- Heart of Darkness, Joseph Conrad
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यह तो एक प्रतीक है, कोई प्यार का पैमाना नहीं.
ReplyDelete...मेरी उम्र करीब १२ साल और मेरे बड़े भाई की ८ साल...
ReplyDeleteumra galat type ho gayee kya?? bade bhai ki umra kam kaise?
ओहोहो, मन लाजवाब हुआ.
ReplyDeleteकाश हमारी बहनें भी ऐसी ठसकदार होतीं..
बहुत शानदार फैसला, लेकिन इस दिन को खाली छोड़ने के बजाय कुछ और तरह से सेलिब्रेट करने के बारे में भी दिमाग लड़ाया जाना चाहिए।
ReplyDeleteudan tashtari is right. Its a token not a parameter for love and affection among siblings. Unfortunately if we start disregarding the cultural concepts and values we have inherited (Educated youth we are good at this) as we have seen without an alternative, we may end up into a hole/shunya with no cultural values. The aspect of the festival should be on celebration, mood and have some fun in life at least on this day and not too much on whether to do it or not. You lose the fun side of it. Remember our society does not train us to portray our affection/appreciation side, so at least this is one day the siblings get a chance to appreciate their bond and get to interact. Especially the girls. To be simple exchanging pleasantries is not bad. You don't have to go for fancy costlier bands.
ReplyDeleteआप सबकी राय के लिए धन्यवाद। परन्तु राखी का पारंपरिक रूप कंही न कही लिंगभेद/असमानताओं, स्त्री के अबलापन, और पुरूष के स्त्री से ज्यादा महत्त्व से जुडा है. बहने अक्सर घरो मे कहती है कि "मेरी उम्र भाई को लग जाय" और इसी बहाने भाई को लूटने का भी कार्यक्रम बनाती है। इसी तरह से करवा चौथ पर स्त्री अपने पति की लम्बी उम्र के लिए भी प्रार्थना करती है। लम्बी उम्र की प्रार्थना अपने परिवारजनों और मित्रों के लिए करना अच्छा है, पर सिर्फ़ पुरूष के लिए इस कीमत पर करना ग़लत है। और उस कामना के बदले कोई उपहार या कुछ पैसे लेना मुझे इस कामना का भी अपमान लगता है। बदलते समय के साथ प्रतीकों का मतलब भी बदल जाता है और जैसे जैसे स्त्री-पुरूष के जीवन मे समान अवसर बढेगे, भेदभाव घटेगा, शायद आने वाली पीढी रक्षा-बंधन को नए नजरिये से देख सके। विशुद्ध रूप से शायद रक्षा-बंधन, भाई और बहन, भाई-भाई, और बहन-बहन के बीच एक दूसरे को याद करने और मात्र प्यार जताने का साधन बन जाय। बरसो से हम चारो भाई बहन एक दूसरे को बिना लिंगभेद के शुभकामनाये देते है, और अगर साथ रहे तो एक फ़िल्म देखने जाते थे।
ReplyDeleteअसहमत ,अपने व्यक्तिगत निर्णयों का औचित्य सिद्ध कर आप उसकी बृहद स्वीकार्यता की आकांक्षा नहीं कर सकती -आज की मशीनी जिन्दगी में ऐसे अवसर मनुष्य को उसके सामाजिक बंधन ,सरोकारों और सबसे बढ़कर मनुष्य होने का आहसास दिलाते हैं ! मनुष्य जो उत्सव प्रिय है -कर्मकांडों में रूचि रखता है और इसतरह दीगर पशुओं से भिन्न हो रहता है ! मैं भी इस त्यौहार को लेकर व्यक्तिगत रूप से अनमना हो जाता हूँ पर इसके विरुद्ध सार्वजनिक नहीं हुआ हूँ -ऐसा चिंतन हमारे समाज के लिए घातक हो सकता है ! आप इस त्यौहार को जैसा भी चाहें पर सार्वजनिक तौर पर इस तरह का चिंतन मेरी दृष्टि में उचित नहीं है !
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