इलाई वेज़ल की 'नाइट' (Night by Elie Wiesel) में उनके 1944 से 1945 तक आउशवित्ज़ यातना शिविर में रहने की के अनुभव हैं. रोमानिया के ट्रांसलवेनिया में जन्मे इलाई 15 साल के थे जब उन्हें सपरिवार 1944 में यातना शिविर में ले जाया गया, जहाँ उनकी माँ, पिताजी और छोटी बहन की मृत्यु हुई. इलाई और उनकी दो बड़ी बहने बची रहीं. 'नाइट' एक तरह से एन फ़्रैंक की डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल' की मिरर इमेज है. एन फ़्रैंक की डायरी एक ऐसे परिवार की कथा कहती है जो पकड़े जाने से पहले दो साल तक नात्सियों से छिपा रहा. नाइट एक परिवार और यहूदी मोहल्ले की कथा है कि कैसे एक पूरा समुदाय खदेड़ कर यातना शिविर में भेजा जाता है, जाने वालों की मनोदशा कैसी थी, और फिर उनके डि-ह्यूमनाइज़ेशन का सिलसिला. यातना शिविर में पहुँचने के बाद की छँटाई में बहुत सम्भव था कि अन्य बच्चों की तरह इलाई भी सीधे भट्टी में फेंक दिए गए होते लेकिन रात को जब उनकी ट्रेन पहुँची और लाइन लगनी शुरू हुई तो यातना शिविर में काम कर रहे किसी ने उसे सलाह दी कि अपनी उम्र 15 न बताकर 18 बताना और उसके पिता को सलाह दी कि 50 न बताकर 45 बताना. इस सलाह की वजह से दोनों को जीने की कुछ मोहलत मिल गई.
मौत को छकाकर यातना शिविर में पहुँचे तो अपने नाम की बदले A-7713 हो गये. व्यक्ति, नाम, व्यक्तित्व, विभिन्नता, विविधता और बहुपरतीय पहचान फ़ासिस्टों के धंधे में बाधा डालती है. इसीलिए व्यक्ति को नम्बर में लोगों को संख्या में बदलने से उनका विमर्श, आसान हो जाता है. डेढ़ साल तक पिता-पुत्र किसी तरह समय-समय पर होने वाले 'सेलेक्सन' से बचे रहे. फिर पिता की साँस आख़िरी दिनों में टूट गई, लेकिन इलाई न सिर्फ़ बच गए बल्कि उन्होंने दुनिया को उस जहन्नुम और होलोकास्ट के बारे में शिक्षित किया, 1986 में नोबेल शांति पुरस्कार पाया और 2016 तक जीवित रहे.