दादी की कहानी शुरू करने का मेरा कोई प्लान नही था। पर अब भी अक्सर बचपन के घर के सपने आते है। कई दिनों के बाद सपने मे फ़िर दादी के साथ लंबा समय बिताया। ब्लॉग खोलकर देखा तो ख़ुद -ब -ख़ुद दादी की कहानी शुरू हो गयी। समय की बंदिश, है, पर कुछ सार मे लाल्बोलुबाब ये है, की दादी आज भी हम सब की स्मृति मे चंडीरूप ही है। बहुत सशक्त , घर परिवार मे उन्होंने अपने सौतेले बच्चे, जेठ के बच्चे और अपने ६ बच्चे संभाले। और घर परिवार तक ही सीमित भी नही थी, खेती मे, जंगल से लकडी लाना, पानी लाना, हर तरह के काम मे उनका सहयोग बराबर ही था। मेरे दादा ख़ुद बेहद मेहनती थे, १४-१६ घंटे रोज़ घर-बाहर काम करते थे। पर शाम के समय खाना खाने के बाद घर के सभी सदस्यों को उनकी अंगीठी के चारो तरफ़ झुंड लग जाता था। और और गीता, भागवत, पुराण और कई तरह के श्लोक, कविता पाठ सबके लिए करते थे। बेटिया, बहुए, उनकी पत्नी, बच्चे, अक्सर गाव के दूसरे लोग भी रोज १-२ घंटे इसमे शामिल रहते थे।
कड़क मेहनत के बाद, खेती, जानवर आदि देखने के बाद भी मेरे दादा अपना दिन सुबह १-२ घंटे की एकांत रामायण पाठ से करते थे। और कुछ जानकारी उन्हें पहाड़ मे पायी जाने वाली जडी -बूटियों की भी थी। डॉक्टर के अभाव मे दूर-दूर तक के गाँव वाले उन्ही का सहारा खोजते थे। साँप के काटे लोगो को बचाने का जिम्मा पूरे इलाके मे उन्ही के पास था। सिर्फ़ सेवा-भाव से ही वों सबकी मदद करते थे, और इसके एवज मे कभी कुछ किसी से नही लेते थे। इस कारण दूर-दूर के गाँव के लोग भी हमारे गाँव को उनके नाम से जानते थे। और खेती के समय, किसी कामकाज के समय, हर वक़्त उनका काम बिन बुलाए कराने को तैयार रहते थे। अपनी जरूरत भर का सामान उन्हें अपनी खेती से मिल जाता था। स्वभाव से बेहद सज्जन , और विनम्र, और बेहद स्वाभिमानी।
मेरी दादी का जीवन से संतुष्टी के साथ जीना इसीलिए भी सम्भव हो पाया होगा क्योंकि दादाजी, उम्र के अधिक होने के बाद भी सज्जन, विनम्र और मेहनती थे। अपनी तरफ़ से जितना बन पड़ता था, सारे काम करते थे। और परिवार के पास भले ही धन न था पर एक बहुत बड़ा मित्रो का दायरा था। बहुत मुश्किलों के बाद भी बेहद हौसला था। फ़िर मौक़ा लगा तो लिखूंगी ।