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Apr 22, 2009

पृथ्वी दिवस:,निकोलाई को श्रदांजली/ असफल स्टालिन ,

पिछले चार दिनों से "पृथ्वी दिवस" यानी अर्थ डे मनाया जा रहा है अपने-अपने तरीके से। हमारी इस प्यारी धरती की एक बड़ी सौगात है जीवन की उत्पत्ति और उसकी विविधता, वों भी इतनी की आजतक इस सारी विविधता को मनुष्य समेट नही सका है। इतना ज़रूर है की दिन-प्रतिदिन, मुनाफाखोरी की फितरत मे ये विविधता रोज़ कुछ कम हो जाती है। आधुनिक खेती के तरीके ले-दे कर पूरी दूनिया मे एक से होते जा रहे है, जो प्रकृति के सम्पूर्ण दोहन पर आधारित है। और इस अनमोल खजाने मे से केवल उन्ही जीवो की जाती बची रह जायेगी जिससे मनुष्य को तात्कालिक और ज्यादा मात्रा मे फायदा हो।

इस दिन दिमाग मे एक मनुष्य जो बार-बार याद आता है वों है निकोलाई वाविलोव और उसके तमाम दूसरे साथी, जिन्होंने १०० साल पहले दूनिया के विभिन्न हिस्सों से बीज संग्रहित किए, पहला "सीड बैंक" बनाया और अपनीजान देकर भी पृथ्वी की एक अमूल्य धरोहर २००,००० बीजो को बचाया। निकोलाई ने जिस समय बीजो को ईकठ्ठा करना शुरू किया उस वक़्त तक genetics जानकारी बहुत सीमित थी. कुछ ही वर्ष हुए थे मेंडल की खोजो को मान्यता मिले हुए. और उसके करीब ४० साल के बाद डीएनए की जेनेटिक मटेरिअल सिद्द होने तक निकोलाई की मौत हो चुकी थी।

पर निकोलाई पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने जैव विविधता को मनुष्य मात्र की अमूल्य धरोहर के बतौर पहचाना, विभिन्न फसलो के उदय और दूनिया के उन हिस्सों की शिनाक्त की जहा ये फासले मानव ने पहले पहल उगाई और लगातार अचेतन रूप से ऐसे गुणों के लिए चुना पीढी दर पीडी की इन फसलो का मजुदा रूप सामने आया। दूनिया के इन हिस्सों को जह्ना कोई फसल domesticate हुयी वहा उसका उत्पत्ति केन्द्र माना जाता है। निकोलाई ने विभिन्न फसलो के उत्त्पती केन्द्रों को सूचीबद्ध किया, और बहुत से 'वीड और वाईल्ड प्रजातियों के बीजों को भी संगृहीत किया। आज यही संग्रह हमारी फसलो को बदलते पर्यावरण, रोज़-ब-रोज़ बदलते हुए जीवाणु व् दूसरे परजीवियों से बचने की राह बन गए है।

निकोलाई जिन दिनों ये महत्त्वपूर्ण काम कर रहे थे वों रूस की सर्वहारा क्रांती और दो विश्व्युद्दो के बीच उथल-पुथल का ज़माना था। स्टालिन के सत्तासीन होने के बाद, रूसी विज्ञान की अपूरणीय क्षति हुयी। युद्द और अकाल से घिरे रूस मे स्टालिन विज्ञान मे चमत्कार जैसा कुछ चाहता था। Trofim Lysenko ने झूठ की बुनियाद पर हवामहल खड़े किए और स्टालिन को जो चमत्कार चाहिए थे, उनका वादा किया। उसका दावा था की बीजों को बोने से पहले ठंडे पानी मे भीगाकर उन्हें इस लायक बनाया जा सकता है की वों कड़क ठण्ड मे उग सके। और सिर्फ़ भोगोलिक बदलाव पोधो की उपज को बढ़ाने के लिए काफी है। वविलोव और उनके सहयोगियों ने ल्य्सेंको के इन झूठो का प्रतिकार किया, और इस एवज मे कई प्रतिभावान वैज्ञानिक, और वविलोव को देशद्रोह के आरोप मे जेल, प्रताड़ना, और मौत मिली। ये एक ऐसे वैज्नानिक की कहानी है, जिसने सत्य के लिए, प्रोफेशनल इंटीग्रिटी के लिए और मानव मात्र की भलाई के लिए अपने प्राण दाव पर लगाए।

वोविलोव का एक दुर्लभ वीडियो अपलोड कराने की कोशिश कर रही हूँ। फिलहाल सफलता नही मिल रही है। .....

4 comments:

  1. निकोलाई वाविलोव के बारे में जानकर अच्‍छा लगा। लेकिन क्‍या आपको नहीं लगता कि बहुराष्‍ट्रीय कंपिनयां बीजों के जीनोम के साथ जिस तरह से छेड़छाड़ कर रही हैं, वह जैव विविधता के लिए खतरा है। आप हमारे चिट्ठे पर आयीं, इसके लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद।

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  2. विषुवतीय पट्टी जैव विविधता के लिए जानी जाती है । इस विविधता का जीन संग्रह अमीर देशों में है अथवा उनके नियन्त्रण में । छेड़-छाड़ जब जीन स्तर तक नहीं पहुँची थी और कोशिकाओं के स्तर पर नई किस्मों को विकसित किया जाता था तब भी उन नई किस्मों में जिन मूल किस्मों के गुण लिए जाते थे ,क्या उनके उत्पत्ति केन्द्रों को रॉयल्टी का कोई हिस्सा मिलता था ? जीन-डकैती का सबसे बड़ा उदाहरण भारत में जहाँ ३०,००० के ऊपर चावल की किस्में थी में से थोक में जीन स्वामीनाथन जैसे लोगों ने फिलीपीन्स के जीन बैंकों में पहुंचाये और रिछारिया जैसे ईमानदार वैज्ञानिकों की मेहनत पर पानी फेरा गया । नई किस्मों को सरकार ने बढ़ावा दिया जिससे विविधता के आधार पर बीजों की अदला बदली की हजारों साल पुरानी परम्परा खत्म हुई और विदेशी बीज कम्पनियां इतनी बड़ी हो गयीं कि कुछ का सालाना टर्न-ओवर भारत की राष्ट्रीय आय से ज्यादा है । कम्पनी के जहाज से ,बीज-कम्पनी की ही बीमा कम्पनी द्वारा उन्हें भेजा जाता है ताकि मुनाफ़े में बंटवारा न हो ।
    क्या आप भी इस जमाने के उन अंधविश्वासों में यकीन रखती हैं कि जीन संवर्धित फसलें दुनिया के खाद्य संकट का हल हैं ?

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  3. "क्या आप भी इस जमाने के उन अंधविश्वासों में यकीन रखती हैं कि जीन संवर्धित फसलें दुनिया के खाद्य संकट का हल हैं ?"

    @ अफलातूनजी,

    "food crisis, स्टार्वेशन, और hunger", मेरी नज़र मे भी कई कारणों से है, जिनमे से राजनैतिक और आर्थिक कारण प्रमुख है. खासकर पॉलिटिकल विल की कमी, कुछ हद तक खासकर विकास-शील देशो मे नीती -निर्माताओ और राजनीतिज्ञों का अज्ञान, एंड लैक ऑफ़ infrastructure, सिविल war (specially इन अफ्रीका) भी है.

    मेरी नज़र मेGMO तकनीक और transgenic फसले एक महत्तवपूर्ण संसाधन है, ताकत है. और मौजूदा व्यवस्था का ताना बना ऐसा है की इसे लोक-कल्याण के लिए आसानी से इस्तेमाल नही किया जा सकता है. परन्तु तकनीकी की द्रिस्टी से कई संभावनाओं मे से एक बेहतरीन हल है. जो अभी शैशव काल मे है। और जानकारी के स्तर पर जन सामान्य को इसे समझाना अपने आप मे किसी चुनौती से कम नही है। बाकी विज्ञान, कला, साहित्य से लेकर सारे संशाधन सत्ता को कायम रखने के औजार ही है। जिन देशो मे फसले पहले पहल इजाद हुयी, और जहा ये खजाना है, उनकी इसे इस्तेमाल करने की अक्ल और कूवत नही है, ख़ास ऐतिहासिक-सामाजिक कारणों से। अपनी परम्परा और संसाधनों को बचाने की ज़रूरत और अपने लोगो के हित मे अंतरास्ट्रीय स्तर पर भी राजनीतीक मोल-तोल की लगातार ज़रूरत है।

    पर धर्म, और जाती की राजनीती से किसे फुर्सत है जो दूर की सोचे?

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  4. सबसे पहले इस जानकारी भरे आलेख के लिए धन्‍यवाद .. पर कोई भी पूर्ण तौर पर गलत नहीं होता .. यह प्रकृति ही है कि मनुष्‍य की हर कार्रवाई के बाद भी कुछ न कुछ चुनौतियां उसके लिए छोड ही देती है .. और उसके तत्‍काल समाधान के क्रम में हम अनिश्चित रास्‍ते पर भी चलने लगते हैं .. विज्ञान के विकास के बाद मृत्‍यु दर में कमी के बाद.. जब असामान्‍य ढंग से जनसंख्‍या में वृद्धि होने लगी तो उसकी आवश्‍यकता की पूर्ति के लिए तत्‍काल कदम उठाना आवश्‍यक था .. पर हडबडी में उठाए गए कदम से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा .. इसलिए समन्‍वयवादी दृष्टिकोण सबसे आवश्‍यक है ।

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