पौड़ी गढ़वाल : मेरे गाँव की तस्वीर |
कविता लिखने और सुधार के मामले में उनका कहना था की लगभग १०० दफे हर कविता को सुधारा है उन्होंने, मैंने उनसे मज़ाक में कहा "फिर तो प्रोफ़ेसर कवि पर हावी हुआ", उनका कहना था की कवि ने पिछले ९९ ड्राफ्ट भी फेंके नही, और कभी प्रोफ़ेसर को उलटे रास्ते फिर कवि ले जाता है. कविता के बारे में उनका कहना है की कविता कर्म लगभग प्रार्थना करने जैसा है, एक स्प्रिचुअल एक्टिविटी, भले ही किसी धर्म से उसका कुछ लेना देना न हो...
मुझे अभी तक अपनी कवितायें पढने का उस तरह का अभ्यास नहीं है, जैसे अपने लेक्चर का, पिछले महीने, डिपार्टमेंट के "Travel Seminar Series" अपना लेक्चर "In the Heart of Himalayas" ख़त्म किया तो कुछ मित्रों ने आग्रह किया की कुछ कवितायें भी पढी जाय. सो दो कवितायें पहले हिंदी में पढी और फिर उनका कुछ इंस्टेंट अंग्रेजी कचर अनुवाद. बाद में "थैंक्स गिविंग के मौके के पर" कुछ इसी तरह के कचर अनुवाद. अपने मित्रों से कहा की मुझे अंग्रेजी आती नहीं, तुम लोग हिंदी सीखों और अनुवाद करो. अपने से ज्यादा हमेशा मुझे दूसरों की कवितायें अच्छी लगती है, सो सुनने का रस भरपूर मिला...
अपने ब्लाग पर भी लगाइये अपनी कविताओं की रिकार्डिंग!
ReplyDeleteकचर अनुवाद :) इसका उल्टा इसी के लहजे में क्या होगा ?
ReplyDelete"अपने से ज्यादा हमेशा मुझे दूसरों की कवितायें अच्छी लगती है,,,"
ReplyDeleteयही तो है सचमुच कवि होना! बधाई !!!
@ डा. मिश्र , अपने आप कहीं से कचर शब्द निकल आया, पता नहीं कहाँ से? क्या होगा इसका उलटा नहीं मालूम ...
ReplyDeleteलचर और कचरा का घालमेल तो कचर में नहीं तब्दील हो गया?
ReplyDeleteएक कविता तो एंडरसन साहब की लगा ही दें.या वहां copyright का कुछ ज्यादा ही चलता हे?
दूसरों की कविताओं को सुनने की दिलचस्पी तो फिलहाल कवि गोष्ठियों में आने वाले कवियों में भी कम दिखाई देती है। सिद्धेश्वर जी ठीक कह रहे हैं।
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