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Dec 4, 2011

Poetry Reading

पौड़ी गढ़वाल : मेरे गाँव की तस्वीर
आपाधापी के बीच कुछ समय बहुत चुपके से पोएट्री रीडिंग का भी इस बीच निकला. शुक्रवार को "Literacy Northwest Series" इस सत्र की ख़त्म हुयी, क्रिस एंडरसन के डेढ़ घंटे की कविता-पाठ के साथ. क्रिस  इंग्लिश डिपार्टमेंट में प्रोफेसर है, और कविता पाठ उनके नए कविता संग्रह "The Next Thing Always Belongs" की कविताओं का था. अंग्रेजी के प्रोफेसर  और कवि-लेखक के अलावा क्रिस कैथलिक मिनिस्टर भी है, और चर्च से जुडी गतिविधियों का  हिस्सा भी. पिछली दफे हालांकि उनकी कविता पाठ के बीच जब वो कहे  "ऐतिहासिक यीशु की उन्हें परवाह नहीं" तो कुछ लोग कमरा छोड़कर चले गए. क्रिस की कवितायें उनके जीवन के बीच से उपजी खट्टी-मीठी कवितायें है, दिल को छू कर जाती है, प्रकृति के साथ गहरे लगाव की उपज है. किसी भी तरह का अतिरेक, कोई प्रतिबद्धता उनमे नहीं है, जीवन का ही बड़ा पाठ है. उनकी कुछ कवितायें सुनते हुए मुझे रिल्के की याद हो आयी.  
कविता लिखने और सुधार के मामले में उनका कहना था की लगभग १०० दफे हर कविता को सुधारा  है उन्होंने, मैंने उनसे मज़ाक में कहा  "फिर तो प्रोफ़ेसर कवि पर हावी हुआ", उनका कहना था की कवि ने पिछले ९९ ड्राफ्ट भी फेंके नही, और कभी प्रोफ़ेसर को उलटे रास्ते फिर कवि ले जाता है. कविता के बारे में उनका कहना है की कविता कर्म  लगभग प्रार्थना करने जैसा है, एक स्प्रिचुअल एक्टिविटी, भले ही किसी धर्म से उसका कुछ लेना देना न हो...
मुझे अभी तक अपनी कवितायें पढने का उस तरह का अभ्यास नहीं है, जैसे अपने लेक्चर का, पिछले महीने, डिपार्टमेंट के "Travel Seminar Series" अपना लेक्चर "In the Heart of Himalayas" ख़त्म किया तो कुछ मित्रों ने आग्रह किया की कुछ कवितायें भी पढी जाय. सो दो कवितायें पहले हिंदी में पढी और फिर उनका कुछ इंस्टेंट अंग्रेजी कचर अनुवाद. बाद में "थैंक्स गिविंग के मौके के पर"  कुछ इसी तरह के कचर अनुवाद. अपने मित्रों से कहा की मुझे अंग्रेजी आती नहीं, तुम लोग हिंदी सीखों और अनुवाद करो. अपने से ज्यादा हमेशा मुझे दूसरों की कवितायें अच्छी लगती है, सो सुनने का रस भरपूर मिला...


6 comments:

  1. अपने ब्लाग पर भी लगाइये अपनी कविताओं की रिकार्डिंग!

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  2. कचर अनुवाद :) इसका उल्टा इसी के लहजे में क्या होगा ?

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  3. "अपने से ज्यादा हमेशा मुझे दूसरों की कवितायें अच्छी लगती है,,,"

    यही तो है सचमुच कवि होना! बधाई !!!

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  4. @ डा. मिश्र , अपने आप कहीं से कचर शब्द निकल आया, पता नहीं कहाँ से? क्या होगा इसका उलटा नहीं मालूम ...

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  5. लचर और कचरा का घालमेल तो कचर में नहीं तब्दील हो गया?
    एक कविता तो एंडरसन साहब की लगा ही दें.या वहां copyright का कुछ ज्यादा ही चलता हे?

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  6. दूसरों की कविताओं को सुनने की दिलचस्पी तो फिलहाल कवि गोष्ठियों में आने वाले कवियों में भी कम दिखाई देती है। सिद्धेश्वर जी ठीक कह रहे हैं।

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