"मैं भाईयों और बहनो संबोधन का पक्षधर हूँ, दलाई लामा, प्रेसिडेंट, प्रोफेसर आदि उपाधियाँ द्वितियक हैं, मूल हमारा मनुष्य होना है, और इस नाते हम एक बडे मानव परिवार के सदस्य है, हलाकि इस परिवार मे भीड़ कुछ ज्यादा है," एक मुक्त हास्य के साथ दलाई लामा ने कोर्नेल युनिवर्सिटी मे करीब ५००० लोगो को संबोधित किया. उन्होने कहा कि औपचारिकता में उनका विश्वास नहीं है, क्योंकि जीवन कि दो सबसे जरूरी घटनायें जन्म और मृत्यु औपचारिकता नहीं देखतीं, ओपचारिकता मनुष्यों के बीच एक् किस्म कि दीवार है. अक्तूबर ८-११ के बीच दलाई लामा इथाका यात्रा पर है। यहाँ पर नमग्याल मठ की अमेरिकी शाखा है, जो १९९२ मे स्थापित की गयी थी. नाम्ग्याल मठ के नए भवन के शिलान्यास हेतु दलाई लामा यहाँ आये है. "BRIDGING WORLDS" विषय को लेकर यहाँ पर उन्होने तीन सार्वजनिक सभाये की। पहली कोर्नेल मे, दूसरी इथाका कालेज मे ओर तीसरी स्टेट थिएटर मे। सारे के सारे हाल्स फुल थे ओर टिकेट एक घंटे से भी कम समय मे बिक चुके थे। मेरे जाने की कोई संभावना ना थी पर आख़िरी दिन ८ साल पुरानी दोस्ती काम आयी ओर gwendoline ने मुझे एक टिकट ऑफर किया। थैंक्स Gwen,!!!!
दलाई लामा पर कुछ जानकारी मुझे "seven years in Tibet" से मिली थी ओर फिर २००२ मे धरमशाला जान भी हुआ, हालाकि दलाई लामा से मिलना वहां संभव ना हुआ . "A Human Approach to World Peace" पर उनका पहली सभा कोर्नेल मे हूई। उन्होने कहा कि बिना आन्तरिक शांति के बाहरी शांति स्थापित करना नामुमकिन है। तीन दशकों की शांति जो शीट युद्य के युग मे बनी रही वो वास्तविक ना थी, क्योंकि उसमे दूसरे के प्रति नफरत, शक, और डर था, ओर तत्परता थी पलक झपकते ही दूसरे को मार गिराने की ।
मनुष्य जानवर नही है ओर मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृति हिंसा के बजाय शांति के साथ ज्यादा तालमेल बिठाती है। हालाकि मनुष्य का शातिर दिमाग हिंसा को जन्म देता है। सह्र्यदयता के लिए, प्रेम और बंधुत्व की सीख उन्हें अपनी माँ से मिली, ये ना तो उनके लंबे अध्ययन का नतीजा है ओर आ ही धार्मिक शिक्षा का। एक सवाल के ज़बाब मे उन्होने कहा कि विकास, हिंसा, ये सब मानसिक वृतिया है और विश्वविधालय का दायित्व है कि वो मानसिक विकास के लिए दुनियाभर मे शिरकत करे। दुनिया मे सिपाही भेजने कि जगह अगर छात्रा /छात्र भेजे जाये तो अमेरिका को मित्रों की कमी ना रहेगी ।
इस पूरे समय मे वो कुछ ना कुछ ऐसा करते रहे जिससे महौल सहज रहे, हँसते रहे हंसाते रहे और एक मठाधीश बनकर नही वरन एक् सरल मनुष्य बनकर उन्होने अपनी बात रखी जिसने लोगो को बहुत गुदगुदाया और उन्होने ७२ साल का फासला नाप कर २०-२२ साल के लोगो तक को अपना मुरीद कर लिया.
दूसरी सभा इथाका कालेज मे हूई। वहां पर उन्होने "Eight Verses on Training the mind" पर व्याख्यान दिया। यहाँ पर उन्होने बुद्ध धर्म के दर्शन, उसकी उत्पत्ति और तिबत्ती शाखा के बारे मे बताया। पुराने शांग शाखा, जैन धर्म ओर बुद्ध धर्म कि समानता ओर विभेद भी बताये। व्यक्ति क्या है? मैं का क्या अर्थ है? इस पर उन्होने करीब १५ मिनट बात की। इससे अच्छी व्याक्या मैंने आजतक नही सुनी और इसका भाव मैं यहाँ रखती हूँ।
"मैं क्या हमारा शरीर है या मन-मस्तिष्क है? या फिर इन दोनो का योग है? वास्तविकता मे हमारा शरीर अपनेआप मे सम्पूर्ण नही है और पूरी तरह से अपने परिवेश पर निर्भर है, इसी तरह हमारे विचार व मस्तिष्क पूर्ण नहीं है, स्वायत्त नहीं है और परिवेश के साथ परस्पर निर्भरता मे ही मैं का भी अस्तित्त्व है।" evolution ओर big bang का उद्धरण से भी उन्होने ये बात समझाई। अभी तक यही सुना था "अहम ब्रहामश्मी"-''मैं हू तो दुनिया है' पर दलाई लामा को सुनकर समझ आया कि वास्तविकता मे "दुनिया है तभी मैं भी है".........
ज्यादा जानकारी और वीडियो के लिएhttp://www.cornell.edu/video/details.cfm?vidID=101&display=player
दलाई लामा पर कुछ जानकारी मुझे "seven years in Tibet" से मिली थी ओर फिर २००२ मे धरमशाला जान भी हुआ, हालाकि दलाई लामा से मिलना वहां संभव ना हुआ . "A Human Approach to World Peace" पर उनका पहली सभा कोर्नेल मे हूई। उन्होने कहा कि बिना आन्तरिक शांति के बाहरी शांति स्थापित करना नामुमकिन है। तीन दशकों की शांति जो शीट युद्य के युग मे बनी रही वो वास्तविक ना थी, क्योंकि उसमे दूसरे के प्रति नफरत, शक, और डर था, ओर तत्परता थी पलक झपकते ही दूसरे को मार गिराने की ।
मनुष्य जानवर नही है ओर मनुष्य की नैसर्गिक प्रवृति हिंसा के बजाय शांति के साथ ज्यादा तालमेल बिठाती है। हालाकि मनुष्य का शातिर दिमाग हिंसा को जन्म देता है। सह्र्यदयता के लिए, प्रेम और बंधुत्व की सीख उन्हें अपनी माँ से मिली, ये ना तो उनके लंबे अध्ययन का नतीजा है ओर आ ही धार्मिक शिक्षा का। एक सवाल के ज़बाब मे उन्होने कहा कि विकास, हिंसा, ये सब मानसिक वृतिया है और विश्वविधालय का दायित्व है कि वो मानसिक विकास के लिए दुनियाभर मे शिरकत करे। दुनिया मे सिपाही भेजने कि जगह अगर छात्रा /छात्र भेजे जाये तो अमेरिका को मित्रों की कमी ना रहेगी ।
इस पूरे समय मे वो कुछ ना कुछ ऐसा करते रहे जिससे महौल सहज रहे, हँसते रहे हंसाते रहे और एक मठाधीश बनकर नही वरन एक् सरल मनुष्य बनकर उन्होने अपनी बात रखी जिसने लोगो को बहुत गुदगुदाया और उन्होने ७२ साल का फासला नाप कर २०-२२ साल के लोगो तक को अपना मुरीद कर लिया.
दूसरी सभा इथाका कालेज मे हूई। वहां पर उन्होने "Eight Verses on Training the mind" पर व्याख्यान दिया। यहाँ पर उन्होने बुद्ध धर्म के दर्शन, उसकी उत्पत्ति और तिबत्ती शाखा के बारे मे बताया। पुराने शांग शाखा, जैन धर्म ओर बुद्ध धर्म कि समानता ओर विभेद भी बताये। व्यक्ति क्या है? मैं का क्या अर्थ है? इस पर उन्होने करीब १५ मिनट बात की। इससे अच्छी व्याक्या मैंने आजतक नही सुनी और इसका भाव मैं यहाँ रखती हूँ।
"मैं क्या हमारा शरीर है या मन-मस्तिष्क है? या फिर इन दोनो का योग है? वास्तविकता मे हमारा शरीर अपनेआप मे सम्पूर्ण नही है और पूरी तरह से अपने परिवेश पर निर्भर है, इसी तरह हमारे विचार व मस्तिष्क पूर्ण नहीं है, स्वायत्त नहीं है और परिवेश के साथ परस्पर निर्भरता मे ही मैं का भी अस्तित्त्व है।" evolution ओर big bang का उद्धरण से भी उन्होने ये बात समझाई। अभी तक यही सुना था "अहम ब्रहामश्मी"-''मैं हू तो दुनिया है' पर दलाई लामा को सुनकर समझ आया कि वास्तविकता मे "दुनिया है तभी मैं भी है".........
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