आज शाम होते-होते कई पुराने दिनों के मित्र परिचित कुछ थोड़ी देर के बाद निर्मल पर लौट आये.
निर्मल को कुछ बार नैनीताल में देखा, कुछ थोड़ी बहुत बातचीत, कुछ ८९-९० के बीच उनके कुछ नाटक (नैनीताल युगमंच द्वारा आयोजित) को देखने का मौक़ा मिला होगा। कभी गाहे बगाहे इन नाटको की टिकट भी बेची होंगी अपने हॉस्टल के दायरे में। फिर भी एक छोटे झीलवाले, रोमानी शहर में निर्मल के मायने, हमेशा कुछ ख़ास रहेंगे, भले ही बोलीवूड में निर्मल के मायने कुछ हाशिये से ज़रा से ऊपर, और एक संघर्षरत एक्टर के हो तब भी।
नैनीताल में पता नहीं अब बीस वर्षों के बाद आम युवाओं के बीच संभावना के मायने क्या है मुझे मालूम नहीं(निश्चित रूप से ग्लोबलाईजेशन ने ये सूरत नैनीताल में भी बदली होगी, बाकी जगह की तरह)। बीस पचीस साल पहले तक सिर्फ एक कोलेज था, रोमान में नहाया हुया, एक लम्बी फैशन परेड। जिससे निकलकर कुछ ९५% जनता बाबू बनने के सपने संजोये जीवन में उतरकर अपने को धन्य समझती थी। कुछ लोग वहीँ अटके पहाड़ पर चढ़-चढ़ कुछ पी. एच. डी. उधम भी करते थे, फिर थककर बी. एड. करके किसी स्कूल की नौकरी पकड़ते थे। सपनों के पीछे दौड़ने का जज्बा बहुत लोगों में था नहीं. मेरी एक मित्र ने जो बेहद अच्छी खिलाड़ी थी, सिर्फ इसलिए खेलना छोड़ दिया कि खेल की प्रेक्टिस के लिए जो कपडे पहने जाते थे, उन्हें देखकर कुछ शोहदों ने उसका जीना हराम कर दिया था. एक बार कुछ हॉस्टल की लडकियां राज बब्बर के साथ फोटो खिंचा आयी थी, कुछ तीन दिन तक होस्टल वार्डन ने उनका जीना हराम किये रखा. हॉस्टल में कुछ रातजगे करके जो कुछ पोस्टर बनाएं होंगे, कुछ ढंग की किताबें पढी होंगी, तो उनके आगे "Mills and Boons" का घटिया अम्बार भी सजाया होगा, कि हमारी एक किशोरवय वाली नोर्मल लड़की वाली पहचान का भ्रम वार्डन को और हॉस्टल के कुछ गुंडा तत्वों को रहे, खासकर अति junior जमाने में. इसी तरह का सीमित सपनो का आकाश था नैनीताल में.
निर्मल कुछ उन ५% लोगो में से थे जिन्होंने इस बेहूदगी के पार संभावनाएं देखी थी। और उसमे भी शायद कतिपय ऐसे होंगे जिन्होंने किसी सपनीली दुनिया में जाने के बारे में सोचा होगा। इसीलिए निर्मल कुछ ज्यादा प्यारे होंगे बहुत से मित्रों को क्यूंकि उनके बाद बहुत से लड़के-लडकिया नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा की तरफ रूख किये। सपनों के पीछे दौड़ने का ज़ज्बा कुछ अभिजात्य वर्ग के नैनीताल के स्कूलों में पढ़े छात्रों में रहा होगा, कोई नसीर बना, कोई अमिताभ, पर खांटी नैनीताली, पहाड़ की ऊबड़-खाबड़ भूगोल की धुन्ध से निकला स्टार सिर्फ निर्मल था.
निर्मल लगभग लगातार एक अरसे तक नैनीताल में आकर थियेटर से लेकर नुक्कड़ नाटक करते रहे, और सपनीली दुनिया के द्वार तक पहुँचने वाले पुल की तरह कुछ लोगों को दिखते रहे। एक बार कुछ इन्तखाब में बैठे एक लड़की जो फ़िल्मी दुनिया में जाना चाहती थी, बड़े समय तक कुछ ख्वाब बुनती रही। मैं कुछ एक कोने अनसुना करके सुनती रही. इसीलिए निर्मल हकीक़त से ज्यादा नैनीताल में एक ख्वाब की तरह लोगों को याद रहेंगे .
"He is an emissary of pity and science and progress, and devil knows what else."- Heart of Darkness, Joseph Conrad
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उनके बारे में एक अच्छा लेख. वे एक बहुत उम्दा कलाकार थे.
ReplyDelete"इस रात की सुबह नहीं "वाले निर्मल ओर "बेंडिट क्वीन" वाले निर्मल मुझे पसंद थे ....इश्वर उन्हें शांति दे.....
ReplyDeleteनिर्मल के बहाने नैनीताल को इस तरह से देखना भी रूमानी लगा ।
ReplyDeleteबढ़िया आलेख.
ReplyDeleteनिर्मल पाण्डे का असमय जाना दुखद रहा. श्रृद्धांजलि!
....यादें .... सिर्फ़ यादें .... उम्दा अभिव्यक्ति!!!
ReplyDeleteवे बेहद उम्दा कलाकार थे और उनकी आँखें गहरी थीं. आज उन्हें याद करके मैं बेहद उदास हूँ. :-(
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