Copyright © 2007-present by the blog author. All rights reserved. Reproduction including translations, Roman version /modification of any material is not allowed without prior permission. If you are interested in the blog material, please leave a note in the comment box of the blog post of your interest.
कृपया बिना अनुमति के इस ब्लॉग की सामग्री का इस्तेमाल किसी ब्लॉग, वेबसाइट या प्रिंट मे न करे . अनुमति के लिए सम्बंधित पोस्ट के कमेंट बॉक्स में टिप्पणी कर सकते हैं .

Aug 23, 2011

अन्ना और अरुंधती

अरुंधती और बाकि सब लोगो का आन्दोलन पर सवाल उठाना ठीक  है. मुझे लगा कि कुछ दूरबीन से देखने की कसरत उन्होंने की है, उसकी भी ज़रुरत है, शायद माइक्रोस्कोप से देखने की भी. अलग अलग तरह के विचार विमर्श कुछ पूरी समझ बनाने में मदद करेंगे.  ये ही हमारे जनतंत्र को मजबूती देगा.

भले ही इस आन्दोलन से कुछ हो या न हो, मैं इससे उत्साहित हूँ, लोग इतनी बड़ी संख्या में बाहर आये, साथ आये, पहली दफा उन्हें दूसरे लोग भीड़ और न्यूसेंस नही लग रहे है. अपने लग रहे है, अपनी शक्ति की तरह दिख रहे है. ये सकारात्मक है. नही तो पिछले २-३ दशकों से वोट डालने भी नही जा रहे थे. लोकपाल के पास होने और उसके प्रभावी होने न होने से भी ज्यादा ये बात अपने मायने रखती है कि जनतंत्र को लोगों ने नेताओं के पास गिरवी नही रखा है, उसमे भागीदारी कर रहे है. हर तरह के लोगों पर इस आन्दोलन ने रोशनी डाली है. जो सबसे ज्यादा क्रांति, सामाजिक बदलाव की बात करते थे, वों लोग कोनों में दुबक गए है. और गाली खाने वाला मध्यवर्ग सड़क पर है. हर तरह के लोग है, हर तबके, हर धर्म और भाषा के. सच तो ये है कि ९०% को नही पता कि लोकपाल क्या है, वों शायद

इसीलिए जुड़े है कि अपने गुस्से और उम्मीदों के लिए उन्हें एक जगह मिल गयी है. मुझे उम्मीद है कि जब इतने विविध तरह के लोग एक जगह खड़े होंगे तो एक दूसरे से बहुत कुछ सीखगें, उनकी चेतना देर सबेर बदलेगी. सरकार और राजनैतिक पार्टियाँ अगर डर  के मारे सिर्फ ५% अपराधियों को भी टिकट आने वाले चुनाव में नही देती, और उनकी जगह २५-३० अच्छे लोग संसद में पहुच जाते है तो ये भी भारी जीत होगी. करोड़ों लोगो के हिस्से कुछ सामाजिक लाभ आएगा.
किसी जनांदोलन को पहले से तय रास्तों पर नही चलाया जा सकता, न ही वों चलता है, समय और समाज के हिसाब से उसकी अपनी स्वतंत्र विकास की दिशा बनती है. मुझे लगता है, अरुंधती इस बात को भूल गयी है. और बहुत सारे दूसरे लोग भी सांस बांधे यही कर रहे है...
 हमारी पीढ़ी ने उत्तराखंड का आन्दोलन देखा, वी पी सिंह के समय का मंडल देखा, उससे पहले आपातकाल के दरमियाँ हुये आंदोलनों के बारे में सिर्फ पढ़ा है. सब के सब बड़े समुदाय की ऊर्जा से चलने वाले, जाहिर तौर पर अराजनैतिक आन्दोलन थे,  कुछ दूध में उबाल की तरह थे, कुछ बहुत थक जाने और सरदर्द के बाद उल्टी कर देने जैसे, इन्ही रास्तों पर उनका अंत हुआ. होना भी था, कोई ग्रासरूट की गोलबंदी नहीं थी, राजनैतिक दूरदृष्टी नही थी, बड़ा सपना नहीं था, लोग कई खेमों में बंटे थे, सो जनाक्रोश का अंत हुआ. पर कुछ हद तक इन सबका गहरा असर हमारे समाज पडा, चेतना पर भी. हो सकता है इस आन्दोलन का भी यही अंत हो..., पर इस बात की मुझे उम्मीद है कि कुछ गुणात्मक परिवर्तन देश की चेतना में ज़रूर आएगा. कम से कम यही बात धंस जाय की जनता की भागीदारी ज़रूरी है, लोकतंत्र में...

9 comments:

  1. http://clearvisor.wordpress.com/2011/08/23/why-i%E2%80%99d-rather-be-anna-than-arundhati/

    ReplyDelete
  2. सटीक पोस्ट ......सच कहा आपने इस आन्दोलन से ..उत्साह मिल रहा है .

    ReplyDelete
  3. we must support Anna, when someone opposes we must see that does he getting salary from govt?

    ReplyDelete
  4. नयी पोस्ट कहाँ गयी!? मैंने उसपर यह कमेन्ट करने का प्रयास किया था:

    बहुत सुन्दर कविता! आज सुबह की सबसे बढ़िया अनुभूति!
    तिब्बती बौद्ध धर्म में श्वेत तारा और हरिता तारा देवियाँ हैं न?.

    ReplyDelete
  5. एक गीत के बोल याद आ रहे हैं. "रस्ते अलग अलग हैं, ठिकाना तो एक है" वैसे ही रामलीला मैदान में जितने भी लोग हैं उनके मुद्दे भी अलग अलग होंगे परन्तु इकट्ठे आवाज़ बुलंद करने के लिए एक बहाना मिल गया.

    ReplyDelete
  6. सुषमा जी, मैं आप से सहमत हूँ कि जनसामान्य का इस तरह से बाहर आना अच्छा संकेत है. अन्ना तानाशाह हैं या लोकतंत्र के विरुद्ध हैं जैसी बातें तार्किक स्तर पर ठीक हो सकती हैं लेकिन जैसा आप ने लिखा "किसी जनांदोलन को पहले से तय रास्तों पर नही चलाया जा सकता, न ही वों चलता है, समय और समाज के हिसाब से उसकी अपनी स्वतंत्र विकास की दिशा बनती है."

    इस जन आंदोलन के भविष्य में क्या परिणाम होंगे यह नहीं कह सकते लेकिन जन सामान्य में चेतना जागेगी यह अच्छी बात है. शायद राजनीति में नये लोग उतरेंगे, यह भी अच्छी बात है.

    ReplyDelete
  7. sushma ji, kavita gayab ho gayee??

    sahi kaha aapne, pratyek aandolan jad ho chuke tantra ko ak bar alodit to karta hi hai...

    ReplyDelete
  8. आपकी बात से सहमत हूं।

    ReplyDelete

असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।