कई वर्षों से लिखने पढ़ने के बीच रही हूँ. यायावरी के बीच बहुत कुछ लिखा (सायंस के इतर) शुरू के वर्षों का गुम हुआ, नष्ट हुया. लिखना बचा रहा. क्यूँ लिखती रही? नहीं मालूम, दिल में लिखने की हूक उठती रही है. लिखना एक मायने में अपने से बातचीत करना है, एक निजी ज़रूरत, अपने परिवेश, अपने समय की समझ बुनते जाने की कोशिश. इस लिहाज़ से बेहद अन्तरंग जगह, अपने साथ बैठ लेने की सहूलियत, चुपचाप, कभी झगड़ा करते हुए, और कभी दुलार के साथ भी...
कविता लिखना खासकर मन की किमीयागिरी है, विशुद्ध प्रज्ञा को झकझोर देने का सलीका है. तर्क की विपरीत दिशा में आगे बढ़ने की मति, दुस्साहस है. हमारे जीनोम में अमूर्तन का कोड है. भाषा के पहले और भाषा के इतर की स्मृति का आदिमबोध है. जो अजाने संसार में, अनिश्चित यात्राओं में हमारी शरण बनता है. इस लिहाज़ से कविता लिखना समझ न आने वाली बड़ी दुनिया के बीच, खुद को तलाश लेने का उपक्रम है.
लिखना फिर निजता के माईक्रोस्कोपिक फ्रेम के बाहर एक बड़े स्पेस में बनीबुनी समझ को परखना है, जीवन अनुभव के बेतरतीब ढेर को खंगालना है, भीतर चलती एक अनवरत तोड़फोड़ है सालों साल की. इस प्रक्रिया में जो भी निज है, एक मायने में फिर निज नहीं रहता, सामाजिक हो जाता है, स्व:अनुभूत एक सामूहिक अनुभूती का छोटा सा टुकडा, एक बड़े भवन की कोई खिड़की, कोई शहतीर हो ज़ाता है.
२००७ में बहुत पुराने मित्र के कहने पर हिंदी का ये ब्लॉग बिना किसी योजना के बनाया. २००७ से इस ब्लॉग पर बीच बीच में लिखती रही हूँ. इस बहाने ये लिखे का ड्राफ्ट एक जगह बचा रहा. लिखना फिर एक संवाद की जगह भी बनी. कई नए पुराने मित्रों के सुझावों, और हौसलाअफज़ाई के बीच संवाद जारी रहा है. आप सभी मित्रों का शुक्रिया.
पिछले १३-१४ सालों से हिंदी परिवेश ज़बान नहीं रही. हिंदी में लिखते रहना स्मृतिलोप के खिलाफ मेरी निजी लड़ाई है, अपनी भाषा, अपने समाज और देश से जुड़े रहने का एक पुल है. पिछले कुछ महीनों में, कुछ नई पुरानी और बहुत सी इस ब्लॉग पर लिखी कविताओं को एक कविता संग्रह की शक्ल दी है. संकलन की तैयारी के दौरान सुझावों के लिए मेरे भाई अभिषेक, और कवि मित्रों में विजय गौड़, मोहन राणा और प्रमोद सिंह का शुक्रिया. आदरणीय मंगलेश डबराल जी का विशेष शुक्रिया , जिन्होंने धैर्य से इस संग्रह को पढ़ा और अपनी उदारता में उत्साहवर्धक शब्द इसकी भूमिका में लिखे है.
अंतिका प्रकाशन से "उड़ते हैं अबाबील" इस महीने के आखिर में आप सब मित्रो को उपलब्ध होगा..
प्रकाशक
अंतिका प्रकाशन
उड़ते हैं अबाबील
(कविता-संग्रह)
© डा. सुषमा नैथानी
ISBN 978-93-80044-84-2
संपर्क
सी-56/यूजीएफ-4, शालीमार गार्डन, एकसटेंशन-II, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.)
फोन : 0120-2648212 मोबाइल नं.9871856053
ई-मेल: antika.prakashan@antika-prakashan.com, antika56@gmail.com
फ्लिपकार्ट पर भी "उड़तें हैं अबाबील" उपलब्ध है.
बधाई हो कविताओं की इस किताब के प्रकाशन पर।
ReplyDeletebadhai evm shubhkamnain. intjar hai pustak ka.
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो सुषमा जी...!!
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleteहमारे भीतर के डबल हेलिक्स में अमूर्तन का जीन ज़रूर होता होगा पर उसे मुखरता कहीं कहीं ही सीखने को मिलती है.
यहाँ आपके लिखे का इंतज़ार रहता है, तो किताब का भी अवश्य ही है.
कविता संग्रह पर बधाई -आप लिखती तो सचमुच बहुत अच्छा हैं और जब संस्कार(प्रारब्ध समाहित ) प्रभावी हों तो स्मृति लोप भला क्या बिगाड़ लेगा ? मुझे आपके गद्य संग्रह का इंतज़ार रहेगा ...
ReplyDeleteबधाई।
ReplyDeleteसिद्धेश्वर, विजय, पुष्पेन्द्र, संजय, उन्मुक्त जी एवम डा. अरविन्द मिश्र आप सबका शुक्रिया.
ReplyDeleteडा. मिश्र, अभी मुझे दूर-दूर तक किसी गद्य संग्रह का आयडिया नही है, हिंदी में कुछ छोटी कविता, या ब्लोग्पोस्ट लिखती हूँ, तो घर के दरवाजे खटखटाने जैसा लगता है..
बधाई…
ReplyDeleteबधाई आपके कविता संग्रह आने का। इंतजार रहेगा इसके पढ़ने का।
ReplyDeleteकविता संग्रह के प्रकाशन की बधाई और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसुषमा जी,
ReplyDeleteआपकी किताब अब हमलोगों के बीच में है....
www.shashiprakasha.blogspot.com पर पधारें...
बहुत-बहुत बधाई ! आपके लेखन में ऐसा कुछ है जो कुछ खास है और यह अच्छा हुआ कि उसे एक नई पहचान मिल रही है।
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