कि तुम जहाँ हो वहीं रहो
अब, खारे पानी की मछरिया
एक सी बात अब
दोस्तों की चुप्पी
या अजनबी गुफ़्तगू
लौटौगे तो आगे चलेंगी
काले पानी की काली परछईयां
कि अब
ज़ब्त हुयी तुम्हारी ज़मीन
हुये तुम पंगत बाहर
घर से दर-ब-दर
गिरमिटिया
कि तुम जहाँ हो वहीं रहो ...
***कि तुम जहाँ हो वहीं रहो ...
ज़मीन से उखड़े लोगों की यही त्रासदी है ...गहन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह........................
ReplyDeleteबेहतरीन...सार्थक रचना.
अनु
awesome is the word! :)
ReplyDeleteIn mid 19th Century many workers from India were sent to work on sugar plantations in Africa and Caribbean on five years Agreement. They could not pronounce "agreement" but said "girmit".
Deleteहां अब ज़ब्त हुई हमारी ज़मीन
ReplyDeleteहुये हम पंगत बाहर
घर से दर-ब-दर
हालात अपने भी यही हैं। परेशान करती कविता।
सार्थक और सामयिक पोस्ट, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "गिरमिटिया":
ReplyDeleteज़मीन से उखड़े लोगों की यही त्रासदी है ...गहन अभिव्यक्ति