पिछले 3-4 महीनों में लगभग 2500 मील ड्राइव करते, रुकते, टहलते अमरीकी वेस्ट कोस्ट को नज़दीक से देखने के मौके बने.
इस यात्रा की दूसरी क़िस्त ......
पहली क़िस्त
U.S. Route 101
अगला दिन हरियाली, धुंध और कुछ गरमी की महक के बीच बैंडन से U.S. Route 101 पर क्रिसेंट सिटी की तरफ ड्राइव करते बीता, दिनभर एक तरफ प्रशांत महासागर का तट बना रहा, दूसरी तरफ डगलस फर, चिनार, चीड़ और रेडवुड के घने जंगलों से ढकी छोटी पहाड़ियों-टीलों का अनंत विस्तार. पहले दो घंटे तक हर दृश्य को कैमरे में कैद करने का मोह बना रहा, फिर ये भी समझ आता कि प्रकृति का विहंगम, विराट रूप किसी भी तरह के कैमरे से कैद नहीं हो सकेगा, इस सबके बीच होने का जो सुख है, वो लम्बे समय तक स्मृति में छाया की तरह रहेगा, शायद कभी सपने में इस सुख की आवृति हो. बचपन के हिमालय में बीते कुछ वर्ष जब-तब सपनों का दरवाजा खटखटातें हैं, शायद प्रशांत महासागर की याद और इन घने जंगलों की याद भी किसी दिन हिमालय की याद के साथ मिल कोई भरम मेरे लिए खड़ा करती फिरे.
शाम पांच बजे के आसपास जिस होटल में रहने की व्यवस्था है, वहां चेकइन किया, होटल मालिक हिन्दुस्तानी मूल का व्यक्ति है, किसी तरह का अपनापा उसकी तरफ से हमें महसूस नहीं हुआ, उसने हमारी साझी हिन्दुस्तानी पहचान तक को अक्नॉलेज तक नहीं किया, हमने भी अपनी तरफ से कोई कोशिश नहीं की. कमरे में किचन और खाना बनाने के बर्तन, फ्रिज आदि है, जरूरत हो तो खाना बनाया जा सकता है, बालकनी के ठीक 100 कदम की दूरी पर समुद्र तट है, बच्चे थकान के बाद, बाथरूम में ज़कूज़ी को लेकर उत्साहित हैं. इस बीच बगल के कमरे में घंटे भर पहले एक पुंक/पंक किस्म का जोड़ा आया है, उसका होटल के मालिक से उसका झगड़ा होता दिखा, फिर पुलिस आयी, और मामला रफ़ादफ़ा हुया. सबकुछ के बीच कमरे में दो क्वीन बेड की जगह एक किंग बेड है, शिकायत करने पर होटल मालिक की बीबी आयी, और हिन्दी में बातचीत के साथ एक फोल्डिंग बेड लगाने का ऑफर देने लगी, हमने बिना न नुकुर के उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, तो उसे तसल्ली मिली और फिर हालिया झगड़े का किस्सा बयान करने लगी. पता चला पुंक जोड़े ने दो कमरे बुक किये थे, जो अगल-बगल नहीं मिले, दुसरे कमरे में वो 2-5 साल के बीच के दो बच्चे छोड़कर आये थे, होटल मालिक ने इस पर आपत्ति जतायी, और पुलिस ने मालिक का पक्ष लिया, और वो लोग किसी दूसरी जगह की तलाश में निकले. होटल की मालकिन पाकिस्तान में पैदा हुयी हिन्दू है, जिसका परिवार सन 80 के आस-पास यहाँ आ गया था, और उसका मियाँ दिल्ली का पंजाबी है, रहन सहन बातचीत नैनीताल की तराई की कसी घरेलू पंजाबिन जैसा ही है, वैसा ही सहज अपनापा और बर्ताव भी. जाते-जाते ये महिला अगले दिन के डिनर के लिए कुछ सादा खाने का वादा और बच्चों को अपने बच्चों के साथ खेलने का निमंत्रण भी दे गयीं.
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"रेडवुड नेशनल फारेस्ट "
कैलिफोर्निया राज्य में संरक्षित "रेडवुड नेशनल फारेस्ट " के भीतर दुनियाभर में रेडवुड (शिकोया), के सबसे बड़े जंगल हैं और दुनियाभर में सबसे ऊँचें पेड़ भी हैं. सड़क के किनारे ट्रेल में जाने के लिए जिस पेड़ के नीचे अपनी कार खड़ी की है, उसके तने के सामने हमारी कार दूर से एक खिलौना नज़र आती है, हम शायद चींटी! पता नहीं क्या होता है पेड़ होना? शायद देना ही इस विलक्षण जीव का स्वभाव है, फल, फूल, आश्रय, भोजन, सुरक्षा, ताप और छाया. हवा , पानी , और इस पृथ्वी पर समस्त दूसरे जीवों के जीवन का आधार हैं पेड़....
जंगल के बीच गुजरते हुए जितनी उपर तक देखों दरख़्त ही दरख़्त और हरी-भूरी झिल्ली से झांकता आकाश, छन-छनकर आती सुनहली धूप. नीचे मॉस, फर्न, हरी घास और सूखे गिरे पत्तों से ढकी हरियल जमीन, ठंडी हवा में घुली ताजगी और पेड़ों की खुशबू. मिट्टी सिर्फ रास्ते में दिखायी देती हैं, नम मिट्टी में यदा-कदा कुछ पैरों के छूटे निशान, कभी घंटे भर चलते हुए भी जंगल के बीच कोई नहीं दिखता, कभी मिलते कुछ अजनबी लोग जो बिना हिचक, अपनी तस्वीर खींचनें का आग्रह करते हैं, उनका कैमरा लेकर मैं कुछ क्लिक-क्लिक करती हूँ, फिर बाय-बाय, कभी किसी की तरफ अपना कैमरा भी बढ़ा देती हूँ, रास्ते पर अक्सर इतना ही संवाद. बहुत कम लेकिन ये भी हुआ कि 5-10 मिनट कुछ दूर तक बतियाते, जंगल के बीच अजनबी के साथ चलते रहे. मेरा रवि भागकर एक दुसरे रास्ते पर पहुँच गया है, और उसके पीछे-पीछे उसके पंकज. रोहन के साथ इन दरख्तों के बीच टहलते, अपने बचपन की कुछ याद साझा करते, बतियाते घंटा भर बीत गया फिर एक बड़े पेड़ की कोटर के भीतर मॉडलिंग करता, नाचता रवि मिला. घने जंगल के बीच ऐसे कई पेड़ हैं, जो इतने पुराने और बड़े हैं की उनके तने का निचला हिस्सा पूरी तरह खोखला हो गया है, और जगह-जगह से टूट गया हैं, उनके भीतर 8-10 लोग खड़े हो सकते हैं, हम चारों लोग भी इन प्राकृतिक घरों में खड़े होने का आनंद लिए कुछ देर को आदिमानव की अवस्था में को याद करते हैं, आखिरी तामाम जानवर, पशुपक्षी, आदिमानव और उसके पूर्वज सब लाखों सालों तक इन्हीं पेड़ों की शरण में रहे हैं,
"सब्ज़:-ओ-गुल कहाँ से आये हैं ,
अब्र क्या चीज़ है, हवा क्या है "....
सहज सवाल मन में उठता है ऊँचे आखिर कितने ऊँचे पेड़ .....
चीड़, देवदार, डगलस फर, साइकेड्स, गिंको की तरह रेडवुड (शिकोया) भी जिम्नोस्पर्म समूह का सदस्य है, और दुनिया में सबसे ऊँचे वृक्षों में इस जाति के वृक्ष भी शामिल हैं. जिम्नोस्पर्म ठन्डे, शुष्क इलाकों में उगने के लिए अनुकूलित पेड़ हैं. जिम्नोस्पर्म की उत्पत्ति फर्न जैसे पूर्वज से हुयी है, परन्तु पूर्णरूप से स्थलजीवी जीवन के लिए जरूरी सामर्थ्य इन पौधों के भीतर क्रमिक विकास के इतिहास में पहली बार पनपी; जैसे जमीन की गहराई से पानी सोखने वाली जड़, हवा में दूर तक बह सकने वाले हलके परागकण और बिना फल वाले बीज (अनावृतबीजी या जिम्नोस्पर्म) और विकसित वास्कुलर सिस्टम. परागण और बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में इन पोधों ने जल की बजाय हवा का सहारा लिया और जमीन की गहराई से पानी सोखने वाली जड़ ने संभव बनाया कि ये पौधें अपेक्षाकृत सूखी जमीन पर उग सकें. विकसित वास्कुलर सिस्टम जड़ों द्वारा सोखा हुया पानी और पत्तियों द्वारा फोटोसिन्थेसिस की प्रक्रिया में बना भोजन पोधे के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचाता हैं. वास्कुलर ट्रांसपोर्ट सिस्टम और गहरी जड़ों की वजह से ही ये संभव हुया कि मॉस और फर्न की तरह ये पेड़ जमीन की सतह पर मौजूद नमी पर आश्रित नहीं रहते, और गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में बिना किसी भी तरह की ऊर्जा खर्च किये पानी पेड़ के शीर्ष तक पहुंचा देतें हैं, पेड़ ऊँचे-ऊँचे और बहुत ऊँचे होते चले जातें हैं. चूँकि उंचाई के साथ लगातार पत्तियों की संख्या और आकार छोटा होता जाता है, और ये पत्तियां कम भोजन बना पाती है, अत: एक सीमा के बाद जब पेड़ के लिए गुरुत्त्वाकर्षण के विपरीत दिशा में शीर्ष तक पानी पहुँचाना, फायदेमंद नहीं रहता, पेड़ का बढ़ना रुक जाता है, वर्तमान में दुनिया का सबसे ऊँचा पेड़, तकरीबन 113 मीटर लम्बा इन्हीं जंगलों में है. वैज्ञानिकों के अनुमान और पेड़ों की लम्बाई के पुराने रिकॉर्ड यही बतातें हैं कि भरपूर उर्वर जमीन और आदर्श परिस्थिति में पेड़ की उंचाई 122 से 130 मीटर तक पहुंचती है. ये पेड़ कई सौ वर्षों से लेकर ४-५ हज़ार वर्ष तक जीवित रहतें हैं.
यूँ तो रेडवुड ऑरेगन और वाशिंगटन राज्य में भी हैं, परंतु इन राज्यों में बहुत ज्यादा जंगल-कटान के बाद, फिर नए सिरे से मैनेज्ड फोरेस्ट्री की नीती के तहत अपेक्षाकृत जल्दी बढ़ने वाले चीड़, डगलस फर, चिनार, पोपलर आदि को उगाया गया हैं, रेडवुड के छोटे झुरमुट और जगह-जगह उगे एकाधि पेड़ ही यहाँ नज़र आते हैं. अकेले उगे रेडवुड या किसी भी दूसरी जाति के पेड़ अपनी पूरी उंचाई प्राप्त करने से पहले ही टूट जाते हैं, भरपूर ऊँचाई तक पहुँचने और बचे रहने के लिए पेड़ों का चारों ओर से बड़े पेड़ों से घिरे रहना ज़रूरी हैं. यहाँ दुनिया के सबसे ऊँचे पेड़ों का बचा रहना भी इसीलिए संभव हुआ है क्यूंकि सैकड़ों मील के विस्तार में फैले जंगल बचे रह गए और समय रहते ही इन्हें संरक्षित करने की पहल हो सकी.......