पिछले 3-4 महीनों में लगभग 2500 मील ड्राइव करते, रुकते, टहलते अमरीकी वेस्ट कोस्ट को नज़दीक से देखने के मौके बने.
इस यात्रा की पहली क़िस्त ....
आस मेरे मन की दिशा
आठ महीने की बारिश, धुन्ध, और सर्दी के बाद, अब गरमी के लम्बे, उजास भरे दिन आयें हैं. हालाँकि जून का महीना है, पर हवा में खुनकी है, पतला स्वेटर पहनने की दरकार अब तक बनी हुयी है. बच्चों के स्कूल बंद हो गए हैं और समर कैम्प शुरू होने में दस दिन का समय है. धूप और ताप की आस में कोरवालिस से दक्षिण की तरफ—कैलिफोर्निया जाना तय हुआ.
बच्चे एक लाल चिड़िया लेकर लौटे हैं. कोई बड़ा होटल, बड़ी दूकान इस बाज़ार में नहीं है. बैंडन की ये हमारी दूसरी यात्रा है, दो बरस पहले यहाँ कैम्पिंग के लिए आये थे और एक दिन समुद्रतट पर बिताया था. इस दफे यहीं बाज़ार में एक मोटेल में दो दिन रुकने का इंतजाम है, जिसे एक मियाँ-बीबी चलाते हैं, अपने घर के निचले हिस्से के कमरों को उन्होंने किराए पर उठाया हैं, और खुद दुमंजिले में रह रहे हैं, किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो उन्हें घंटी बजाकर बुलाया जा सकता है. इस तरह के इंतजाम में, एक अनजान शहर में रुकने का ये हमारा पहला अनुभव अच्छा रहा.
अगला उजला दिन समंदर किनारे ड्राइव करने और जगह-जगह रुकते-टहलते बीता. साफ़ रेतीले तट से कुछ सौ मील की दूरी पर विशालकाय खड़ी चट्टानें या इनके समूह दिखतें हैं, जो समुद्री पक्षियों के लिए आदर्श शरणस्थल हैं, अंडे और चूजे चट्टानों पर सुरक्षित रहते हैं, और चारों तरफ पानी में आहार प्रचुर मात्रा में मौजूद है. एक स्पॉट पर पार्क रैंज़रस की दूरबीन इस बीच रेत में घोंसला बनाने वाली एक छोटी सी चिड़िया स्नोवी प्लोवर पर केन्द्रित है. पानी और आकाश के बीच विस्तार में उड़ते अनगिनत पक्षी. मेरे दोनों बच्चे पक्षियों को पहचानने और उनकी गिनती में अपनी तरह से मशगूल हैं, स्कूल से मिली नयी नयी छूट्टी को लेकर उल्लास हैं.
ऑरेगन का तट भुरभुरी रेत का बना हुया है और प्रशांत महासागर के पूरे तटवर्ती क्षेत्र में यहीं सबसे कम चट्टाने
हैं, जिसकी वजह से यहाँ कई छोटे पत्तन बने, और बीसवीं सदी के कई दशकों
तक यहाँ जहाजों की आवाजाही बनी रही. पानी में खड़ी , काली सलेटी चट्टानें, सर्दी के महीनों में घने कोहरे के बीच अदृश्य हो जाती हैं, और लहरों के वेग और
तेज हवा के बीच जूझते, जहाज़ बहुधा इन चट्टानों से टकराकर क्षतिग्रस्त हुये हैं, इस क्षेत्र को "Graveyard of the Pacific." भी
कहा जाता है. वर्ष
१७९२ से लेकर अब तक लगभग २००० से ज्यादा बड़े जहाज़ इन चट्टानों से टकराकर क्षतिग्रस्त हुये हैं, उन्नीसवीं सदी के अंत में
कई लाइट हॉऊस बनें, ताकि
जहाजों को दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया जा सके . लाईट हॉऊस में अक्सर एक
परिवार रहता जो करोसीन के लेम्प को रात भर रोशन रखने की ज़िम्मेदारी उठाता
था. पिछले ३०-४० सालों में अब लाइट हॉऊस की कोई उपयोगिता नहीं बची, तो ये
बंद
हो गयें और इनमें से कुछ पर्यटन के लिए या कुछ बच्चों के मनोरंजन के
वास्ते पार्क का हिस्सा हैं.
प्रशांत महासागर के भीतर इसके थपेड़ों को झेलने का मेरा एक ही अनुभव है. दो बरस पहले व्हेल मछली को नज़दीक से देखने की लालसा में एक ट्रॉलर में तीन घंटे गुजारे थे. ज़रा सी देर को ट्रॉलर रुकता या इसकी गति धीमी होती, समन्दर की तेज़ लहरे उसे सूखे पत्ते की तरह कई फीट उछाल देती. कुल मिलाकर कई दफे ऎसी स्थिति बनी कि शायद आखिरी दिन हो जीवन का, कुछ पलों के लिए समंदर के अप्रितम सौन्दर्य, वैभव, के बीच प्रकृति की क्रूरता और अपने अदनेपन, असहायता का तीखा बोध तारी हुआ. मेरे पति पूरे समय डेक पर उल्टियां रोकने की कोशिश करते रहे और मैं दो छोटे बच्चों के बीच घिरी केबिन में ही बैठी रही, दो बार खिडकी के बहुत पास से व्हेल मछली की छलांग हम देख सकें, तकरीबन 10 मिनट के लिए डेक पर जाना हमारे लिए भी संभव हुआ. डेक पर बच्चों ने दो क्रेब पकड़े फिर वापस पानी में फेंक दिए . व्हेल, क्रेबस और ट्रोलर की याद बच्चों के मन में बहुत दिन तक खुशी बनकर रही, मेरे मन में सांत्वना बनकर...
'बुलॉर्ड स्टेट बीच' के कोने में बने बैंडन लाईट की छोटी-संकरी सीढीयाँ चढ़कर लाईटहॉऊस की ऊपरी मंजिल तक पहुंचती हूँ, पूरा तीन सौ साठ के कोण पर नज़र जाती है, 100 मीटर की दूरी पर एक दूसरा लाइटहॉऊस का होना अजीब लगता है. टूरिस्ट गाइड ने 100 मीटर की दूरी पर बने दूसरे लाईटहॉउस का किस्सा कुछ यूँ बयाँ किया "1910 के आस-पास किसी तूफानी रात में एक जहाज तट से सिर्फ सौ मीटर की दूरी पर एक चट्टान से टकराया. रात के समय जल्दबाजी में जहाज त्यागकर सब लोग एक चटान पर आ गए, सुबह पता चला की ये टक्कर समंदर के बीच न होकर तट के बहुत नज़दीक हुयी थी, जहाज को बचाया जा सकता था." अंधेरी रात में कई महीनों के सफ़र के बाद थके और भ्रमित कप्तान की अवस्था का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. प्रकृति के विराट वैभव के बीच छिपी भयंकर क्रूरता का गवाह टूटे, दुर्घटनाग्रस्त जहाजों का म्यूजियम पास ही है. एमिलिया एयरहार्ट समेत प्रशांत महासागर कितने जाँबाजों की कब्रगाह है?
इस यात्रा की पहली क़िस्त ....
आस मेरे मन की दिशा
आठ महीने की बारिश, धुन्ध, और सर्दी के बाद, अब गरमी के लम्बे, उजास भरे दिन आयें हैं. हालाँकि जून का महीना है, पर हवा में खुनकी है, पतला स्वेटर पहनने की दरकार अब तक बनी हुयी है. बच्चों के स्कूल बंद हो गए हैं और समर कैम्प शुरू होने में दस दिन का समय है. धूप और ताप की आस में कोरवालिस से दक्षिण की तरफ—कैलिफोर्निया जाना तय हुआ.
पांच घंटे की ड्राइव के बाद भी
बारिश अब तक साथ लगी हुयी है, धूप का नामोनिशान नहीं है. रास्तेभर घने
जंगलों के लैंडस्केप के बीच लकड़ी के बड़े बड़े टाल, आरा मशीने और कई जगह
ड्रिफ्ट वुड के ढ़ेर के ढेर देखते आखिरकार शाम को बैंडन पहुंचे. बैंडन
प्रशांत महासागर के तट पर बसा एक छोटा सा कस्बा है. हल्की ठण्ड के बावजूद
यहाँ मौसम अच्छा है. तट पर 2 मील लम्बा डेक है, जिसपर 'ड्रैगन, समंदर और लाइट हॉउस' की
थीम पर बनायी स्कूली बच्चों की पेन्टिंग्स लटकी है, वोटिंग कल तक जारी
रहेगी. सामने तीन छोटे रेस्टोरेंटस में समन्दर से सीधे पकड़े हुए
मसल्स, क्रेब्स, सालमन मछली के व्यंजन बिक रहे हैं, एक काउंटर पर आठ डॉलर
में मछली पकड़ने का लायसेंस मिल रहा है, डेक पर कई मछलीमार भी हैं. कुछ दूरी पर पोर्ट ऑफिस है, अतीत की छूटी हुयी निशानी, एक गवाह कि उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं
सदी के शुरुआती दशकों में ये तटवर्ती क़स्बा, एक महत्तवपूर्ण पत्तन था.
इस बाज़ार में हाथ से बने काठ के खिलोनों की दूकान मिल
जाने पर मेरे बच्चे खुश हैं और दुकानदार के साथ रंग-बिरंगी चिड़िया और
दुसरे खिलोनों को देखने में मशगूल हैं. सिर्फ एक ही चिड़िया लेने की
ताकीद है, तो बार बार पलट पलट कर दोनों भाई सलाह कर रहे हैं. हमारी एक
पड़ोसन बसंत के आते ही अपने घर की चारदीवारी पर इसी तरह की रंग-बिरंगी
चिड़िया टांग देती हैं, हवा से इनके हिलते पंख, बच्चों के लिए पिछले 3
वर्षों से विशेष आकर्षण हैं. इस तरह की चिड़िया मुझे लोकल मार्किट में कहीं
नहीं दिखी, एक दिन पूछने पर पता चला कि बैंडन के बाज़ार में एक छोटी सी
दूकान में बिकती हैं. अमेरिकी लोकल बाज़ार में, इस तरह की अच्छी कारीगरी के
खिलोने मिलना अच्छी बात है, जो वालमार्ट टाईप सुपरस्टोर के मॉस
प्रोडक्शन से अलहदा हैं.
बच्चे एक लाल चिड़िया लेकर लौटे हैं. कोई बड़ा होटल, बड़ी दूकान इस बाज़ार में नहीं है. बैंडन की ये हमारी दूसरी यात्रा है, दो बरस पहले यहाँ कैम्पिंग के लिए आये थे और एक दिन समुद्रतट पर बिताया था. इस दफे यहीं बाज़ार में एक मोटेल में दो दिन रुकने का इंतजाम है, जिसे एक मियाँ-बीबी चलाते हैं, अपने घर के निचले हिस्से के कमरों को उन्होंने किराए पर उठाया हैं, और खुद दुमंजिले में रह रहे हैं, किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो उन्हें घंटी बजाकर बुलाया जा सकता है. इस तरह के इंतजाम में, एक अनजान शहर में रुकने का ये हमारा पहला अनुभव अच्छा रहा.
अगला उजला दिन समंदर किनारे ड्राइव करने और जगह-जगह रुकते-टहलते बीता. साफ़ रेतीले तट से कुछ सौ मील की दूरी पर विशालकाय खड़ी चट्टानें या इनके समूह दिखतें हैं, जो समुद्री पक्षियों के लिए आदर्श शरणस्थल हैं, अंडे और चूजे चट्टानों पर सुरक्षित रहते हैं, और चारों तरफ पानी में आहार प्रचुर मात्रा में मौजूद है. एक स्पॉट पर पार्क रैंज़रस की दूरबीन इस बीच रेत में घोंसला बनाने वाली एक छोटी सी चिड़िया स्नोवी प्लोवर पर केन्द्रित है. पानी और आकाश के बीच विस्तार में उड़ते अनगिनत पक्षी. मेरे दोनों बच्चे पक्षियों को पहचानने और उनकी गिनती में अपनी तरह से मशगूल हैं, स्कूल से मिली नयी नयी छूट्टी को लेकर उल्लास हैं.
प्रशांत महासागर के भीतर इसके थपेड़ों को झेलने का मेरा एक ही अनुभव है. दो बरस पहले व्हेल मछली को नज़दीक से देखने की लालसा में एक ट्रॉलर में तीन घंटे गुजारे थे. ज़रा सी देर को ट्रॉलर रुकता या इसकी गति धीमी होती, समन्दर की तेज़ लहरे उसे सूखे पत्ते की तरह कई फीट उछाल देती. कुल मिलाकर कई दफे ऎसी स्थिति बनी कि शायद आखिरी दिन हो जीवन का, कुछ पलों के लिए समंदर के अप्रितम सौन्दर्य, वैभव, के बीच प्रकृति की क्रूरता और अपने अदनेपन, असहायता का तीखा बोध तारी हुआ. मेरे पति पूरे समय डेक पर उल्टियां रोकने की कोशिश करते रहे और मैं दो छोटे बच्चों के बीच घिरी केबिन में ही बैठी रही, दो बार खिडकी के बहुत पास से व्हेल मछली की छलांग हम देख सकें, तकरीबन 10 मिनट के लिए डेक पर जाना हमारे लिए भी संभव हुआ. डेक पर बच्चों ने दो क्रेब पकड़े फिर वापस पानी में फेंक दिए . व्हेल, क्रेबस और ट्रोलर की याद बच्चों के मन में बहुत दिन तक खुशी बनकर रही, मेरे मन में सांत्वना बनकर...
'बुलॉर्ड स्टेट बीच' के कोने में बने बैंडन लाईट की छोटी-संकरी सीढीयाँ चढ़कर लाईटहॉऊस की ऊपरी मंजिल तक पहुंचती हूँ, पूरा तीन सौ साठ के कोण पर नज़र जाती है, 100 मीटर की दूरी पर एक दूसरा लाइटहॉऊस का होना अजीब लगता है. टूरिस्ट गाइड ने 100 मीटर की दूरी पर बने दूसरे लाईटहॉउस का किस्सा कुछ यूँ बयाँ किया "1910 के आस-पास किसी तूफानी रात में एक जहाज तट से सिर्फ सौ मीटर की दूरी पर एक चट्टान से टकराया. रात के समय जल्दबाजी में जहाज त्यागकर सब लोग एक चटान पर आ गए, सुबह पता चला की ये टक्कर समंदर के बीच न होकर तट के बहुत नज़दीक हुयी थी, जहाज को बचाया जा सकता था." अंधेरी रात में कई महीनों के सफ़र के बाद थके और भ्रमित कप्तान की अवस्था का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. प्रकृति के विराट वैभव के बीच छिपी भयंकर क्रूरता का गवाह टूटे, दुर्घटनाग्रस्त जहाजों का म्यूजियम पास ही है. एमिलिया एयरहार्ट समेत प्रशांत महासागर कितने जाँबाजों की कब्रगाह है?
अच्छी लगी पोस्ट ..
ReplyDeleteshukriya Parul!
Deleteमैं कनफ्यूज़्ड हूं, आप वैज्ञानिक हैं या साहित्यकार!
ReplyDeleteबहुत शानदार. लगा जैसे सब पास ही हो.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा संस्मरण!
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