Copyright © 2007-present by the blog author. All rights reserved. Reproduction including translations, Roman version /modification of any material is not allowed without prior permission. If you are interested in the blog material, please leave a note in the comment box of the blog post of your interest.
कृपया बिना अनुमति के इस ब्लॉग की सामग्री का इस्तेमाल किसी ब्लॉग, वेबसाइट या प्रिंट मे न करे . अनुमति के लिए सम्बंधित पोस्ट के कमेंट बॉक्स में टिप्पणी कर सकते हैं .

Feb 25, 2009

स्मृति के जंगल मे-जिंदगी से रूबरू ...............

रात के ग्यारह बजे है और लोस एंजेल्स के भीड़-भाड़ वाले एयरपोर्ट मे अपनी फ़्लायट आने तक तीन घंटे काटने है। तीन-४ दिन की १०-१२ घंटे की मीटिग के बाद दिमाग वैसे भी उचटा हुआ है, और कुछ पढ़ने का मन नही है। किसी तरह से अपने लिए एक सीट मिलती है खिड़की के पास, और लगता है की क्या किया जाय। लैपटॉप निकाल कर देखा जाय की ब्लॉगजगत मे क्या चल रहा है? हिन्दुस्तान मे क्या हो रहा है? किसी को फ़ोन किया जाय इतनी रात गए? बच्चे सो चुके होंगे, बेवजह नींद ख़राब होगी। फ़िर दिमाग घूमता है, की दूनिया के दूसरे हिस्सों मे क्या वक़्त होगा? पर बात भी की जाय तो क्या?

अचानक मेरा ध्यान सामने से आती एक वृद्ध महिला पर जाता है, जिसकी उम्र तकरीबन ८० के ऊपर होगी, और चहरे पर कुछ ऐसे भाव जैसे कोई किसी मेले मे खो गया है, या फ़िर किसी आदिम गुफा से निकल कर इस अपरिचित जगह पर आ गया है। उसके पीछे एक अधेड़ उम्र की औरत और एक किशोरी, जो उसकी बेटी और नातिन है। बातचीत मे पता लगता है की वृद्धा को भी उसी जगह जाना है, जहाँ मेरी मंजिल है। और उसकी बेटी बताती है की किसी मित्र-परिवार से मिलने उसकी माँ अकेली जा रही है। वों परिवार एयरपोर्ट से उन्हें रिसीव कर लेगा। एक चिंता और एक संशय लगातार हावी है इन लोगो की बातचीत मे। और मेरे लिए बहुत कुछ अंदाजा लगाना सम्भव नही हुया की माजरा क्या है? सिवाय इसके की इतनी बूजूर्ग महिला का अकेले सफर करना परिवारजनों के लिए वैसे भी चिंता का कारण होता है। मैं भी अपनी माँ को दादी को शायद ऐसे ही हिदायत देती।

विमान चलने को है और वों वृद्धा मुझसे दो सीट छोड़कर आगे बैठी है। विमान बीच मे मेडफोर्ड मे रुकता है २० मिनिट के लिए, पर कोई उतरता नही है, और वृद्धा उतरने को बैचैन है। एयर होस्टेस उन्हें मना करती है, और एक बेबस विलाप, शुरू हो जाता है। उठकर पास जाती हूँ और पूछती हूँ की माजरा क्या है ? और पता लगता है, की ये वृद्धा पूरी तरह से भूल चुकी है की उसे कहाँ जाना है। और उसे लगता है की उसे मेडफोर्ड मे उतरना है, यहाँ उसे लेने उसकी बेटी आयेगी। पर मेडफोर्ड उतरने के बारे मे भी वों संशय मे है, और इतने लोगो के बीच उसे पता नही की उसे कहाँ जाना है, वों भीड़ मे खोया हुया एक बच्चा बन जाती है।
इस पूरे वाकये के बाद मुझे लोस एंजेलेस मे हुयी बातो और लगातार हिदायतों का कारण समझ मे आता है, और वृद्ध स्त्री अल्जाईमर से पीडीत थी। यानी उनकी स्मरण शक्ति जबाब दे चुकी थी। किसी तरह से उन्हें चुप कराया और बताया की उन्हें मेरे साथ जाना है, और जब तक उनके पारिवारिक मित्र नही आयेंगे, मैं उनके साथ रहूंगी। और अगर नही आए तो वों मेरे साथ मेरे घर आ सकती है।

किसी तरह से जब अपने शहर पहुंचे और वों मित्र आए, तो वों महिला ऐ घंटे तक रोती रही। और मैं अपने रास्ते निकल आयी हूँ। .....
पहली बार मेरा वास्ता अल्जाईमर के मरीज़ से इस तरह पडा है, और फ़िर लगता है की मनुष्य जीवन का सार क्या है, इतनी जद्दोजहद , इतनी पढाई -लिखायी, भागमभाग आख़िर किस मतलब की है ? इन अनुभवों का मेरे लिए या किसी के लिए भी क्या मायने है? जीवन के अंत मे अगर इस जद्दोजहद की स्मृति भी नही बची तो .................

6 comments:

  1. आपका संस्मरण और यह अनुभव अद्भुत है। प्रभावित हूं।

    ReplyDelete
  2. "फ़िर लगता है की मनुष्य जीवन का सार क्या है, इतनी जद्दोजहद , इतनी पढाई -लिखायी, भागमभाग आख़िर किस मतलब की है ? इन अनुभवों का मेरे लिए या किसी के लिए भी क्या मायने है? जीवन के अंत मे अगर इस जद्दोजहद की स्मृति भी नही बची तो ................."
    कितना बड़ा सच कहा है आपने...हम जीवन इस भाग दौड़ में जी ही नहीं पाते उसे बेकार में गवां देते हैं...बहुत मर्म स्पर्शी और सार गर्भित पोस्ट है आपकी.

    नीरज

    ReplyDelete
  3. कल क्या हो...हम नहीं जानते लेकिन जो आज है बस यही सच है...लेकिन मन के किसी कोने में यही संशय मन को बेचैन कर देता है...आपकी पोस्ट पढकर फिर से मन भटक गया...जल्दी ही उस भटकाव से निकलना होगा...

    ReplyDelete
  4. ये बीमारी वाकई में बहुत कष्टकारी है, जिसे हुई उसके लिये भी और परिवार वालों के लिये भी।

    ReplyDelete
  5. सच कहा जाय तो किसी चीज़ का कोई मतलब नहीं है....आपने जिस घटना का ज़िक्र किया पढ़ते हुए दिमाग में बहुत से बिम्ब भी उभर रहे थे ..मेरा चेहरा.....तो अपने परिजन का चेहरा....इन्हीं सब को देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि आप और हम रहे या ना रहे ये सब तो ऐसे ही चलता रहेगा। कोई कर भी क्या सकता है

    ReplyDelete

असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।