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Apr 8, 2011

अन्ना की इस पहल का समर्थन है... पर सपने कुछ बड़े हो इसकी कामना है

अन्ना की इस पहल का समर्थन है, और खुशी है कि लोग सामाजिक सरोकार के लिए घर दफ्तरों से निकल रहे है. जनतंत्र  बिना लोगो की भागीदारी के बेमतलब है. जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को भी ये बताने की ज़रुरत है की जनता हम है, और तुम्हारा  दायित्व जनता के प्रति है. जनता के भाग्य विधाता तुम नहीं. अन्ना हजारे और उनके साथियों ने ये एक अच्छा बल्कि बहुत अच्छा काम किया है, लोगों को एक इशू पर गोलबंद किया है. सिर्फ एक बात को फोकस किया है. जैसा की दिखता है की लोकपाल बिल पास हो जाएगा, इसके भारतीय जनमानस में कुछ दूरगामी परिणाम होंगे. लोगों की सबसे पहले निराशा टूटेगी की हम कुछ नहीं कर सकते. और नयी पहलकदमी करने में लोग हिचकेंगे नही. सही तरह से जनतंत्र की ताकत को इस्तेमाल करने का सलीका हम सीखेंगे. ये भी सीखने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है. ...

 लोकपाल बिल सिर्फ एक स्टेप है सही दिशा में. बाकी उसकी सीमा है, उससे हमारा समाज किसी बदलाव एकदम से जाने वाला नहीं है.  भ्रष्टाचार भी एकदम से नहीं जाने वाला. क़ानून और उस क़ानून का भी पालन इसी समाज में होना है, जाने पहचाने रास्तों से बहुत अलग नहीं होगा. परन्तु न्यायिक प्रक्रिया कुछ तेज़ी पकड़ेगी, और समय रहते कुछ हो सकेगा. सारी शर्ते मान ली जाय तो देश के कोष में कितना धन वापस आ सकता है, कितने की चोरी बच जायेगी.  पर ये हो सके इसके लिए भी लोगो को उस पर भी नज़र रखनी होगी. इस सीमा के साथ ही इस आंदोलन को देखना होगा.

बाकी मुझे कुछ आपत्ति भी है, जैसे कि भारत माता एक सम्भ्रांत हिन्दू जेवर और गहनों से भरी औरत है, अगर वाकई भारत का प्रतिनिधित्व ये औरत करती है तो फिर किसी भी आन्दोलन की ज़रुरत ही क्या है.  सब कुछ हंसी खुशी है, सपन्नता है. हालात ये है कि  स्वास्थ्य और शिक्षा और नागरिक अधिकारों में बहुसंख्यक औरते और बच्चे इस देश में सबसे निचले पायदान पर खड़े है. और उन सब लोगों के लिए जो इस देश में सबके लिए सामान अवसर और न्याय चाहते है.  भारत देश की भारत माता की तरह की  रोमानी कल्पना ये बताती है कि  ये  समझ कितनी अंधी गलियों की तरफ रूख कर सकती है, कितना सीमित इसका सपना है, कितनी सतही समझ है.  और कितने लोग इस भारत की कल्पना से बेदखल है. इन्ही बेदखल लोगों को भारत के नक़्शे के भीतर भरना है.  लाखों करोड़ों भारतीयों का चेहरा, जो सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार की मार सहते है, जिनके लिए कोई शिक्षा, कोई  सुविधा नही और जिनके हिस्से इस जनतंत्र में कुछ नहीं आया है.  अगर किसी भी जन जागृति से सबसे आख़िरी सीढ़ी पर खड़े, सबसे कमजोर मनुष्य को कोई उम्मीद नहीं नज़र आती तो उसका कोई मतलब नहीं है.  
भारत माता की जितनी भी बेटियाँ है, अधिकाँश इतने सुकून से नहीं है, हर जगह घर बाहर मारा मारी करती है, .,  सुरक्षित नहीं है, किसी को भी इस तरह प्रसन्नवदन आशीर्वाद देने की हालत में तो  बिलकुल नहीं है....
अन्ना के आन्दोलन को अपना समर्थन दे, परन्तु अपनी आपत्ति भी पहुंचाए...., 
इन मिलेजुले सपनों के धरातल को कुछ बड़ा बनाए...

4 comments:

  1. अच्छा मुद्दा उठाया आपने. अभी तो हमने सड़क पर खड़े आदमी और बड़े बड़े उद्योगपतियों, दोनों को एक सुर में बात करते सुना... लेकिन कल जब सवाल उस भ्रष्टाचार का उठेगा जिसमें दोनों के हित टकरायेंगे तब.... जब सवाल उठेगा उस मोरल करप्शन का तब.... और जब वो सवाल उठेंगे जो जेंडर की बराबरी का हक़ मांगेंगे तब...... ...... इसलिए अभी तो ये बस एक शुरुआत है.....हाँ अभी बहुत दूर जाना है...

    रही बात भारत माता को देवी रूप में शोभायमान प्रदर्शित करने की तो वो तो बहुत ही दूर की कौड़ी है अभी.....

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  2. पूरे मुद्दे को आपके नजरिए से देखना भी अच्‍छा लगा।

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  3. bharat mata ki tasveer ke antarvirodh per aapne sahi dhyan khicha hai. satik aur santulit.

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  4. ..भारत माता एक सम्भ्रांत हिन्दू जेवर और गहनों से भरी औरत है, अगर वाकई भारत का प्रतिनिधित्व ये औरत करती है तो फिर किसी भी आन्दोलन की ज़रुरत ही क्या है. सब कुछ हंसी खुशी है, सपन्नता है. हालात ये है कि स्वास्थ्य और शिक्षा और नागरिक अधिकारों में बहुसंख्यक औरते और बच्चे इस दे....

    I think you are the first one who has raised a valid point. No one ever thought about it.

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