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Apr 24, 2011

टेक्सास: सेन अंतोनियो

सेन अंतोनियो शहर टेक्सास के बाकी शहरों से कुछ अलग है. बड़े शहरों के बीच  ख़ास पहचान और तकरीबन ३०० साल का इतिहास बचाए हुये भी. इतिहास की छवी और आधुनिकता सेन अंतोनियो नदी के  दोनों तरफ बड़े करीने से बसे   मनोहारी डाउनटाउन में साफ़ दिखते है. मुख्य आकर्षण  नदी के लेवल पर करीब ५ किलोमीटर (२.७ मील) सफ़ेद सैंड स्टोन की बनी हुयी वाकवे है जिसका विस्तार १३ मील तक करने की  योजना है. इस वाकवे के ऊपर सड़क, खूबसूरत इमारते, जीवन की बाकी चहल पहल है. मुश्किल से २० फीट चौड़ी नदी है यहाँ, उद्दगम के बहुत करीब, बाद में चौड़ी होती नदी अंतत: मेक्सिको की खाड़ी में मिलती है.  बहुत उथली हरे रंग के पानी से भरी साफ़ सुथरी. इतनी गर्मी, नमी के बीच भी पूरी तरह से मच्छर गायब, एक सुखद अहसास. नदी और उसके  ऊपर हर दो गज पर बनी वेनिशियन स्टायल की  पुलिया,  वेनिस  में होने का भ्रम कुछ पल के लिए देती है.  पूरे रस्ते पर बेला और चम्पा के फूलों की महक है, इधर उधर केले के पेड़, कुछ ट्रोपिकल दूसरे पोधे देखना कुछ अपनेपन से भरता है. कुछ बड़ी तरतीब से पूरे शहर में और नदी किनारे भी बहुत छोटे पाल्म के पेड़ है, दो फीट के, शायद खास तरह के लैंडस्केपिंग के लिए ब्रीड किये हुये, इस वक़्त फलों से भरपूर. ऊपर सड़क पर जितनी मारामारी है, नीचे वाकवे उतनी शांत है, नदी बहुत बहती नहीं दिखती पर मिलाजुला शोर पानी के बहने का पार्श्व में लगातार है, कुछ शायद फव्वारों और छोटे सजावटी  झरनों से पानी के गिरने की आवाज है.कुछ बतखें है... बीच बीच में पर्यटकों से भरी नाव गुजरती है बाकी हरे रंग का पानी शांत है.  रोहन ने मेरा ट्राईपोड   हथिया लिया है, और अपने कैमरे से कुछ शूटिंग उनकी चल रही है,  उसे पापा  के साथ आगे आगे भागना है. रवि को किसी पेड़ से गिरे कुछ फल मिल गए है, और पूरे रास्ते मिलते रहे. उसका काम उन्हें पानी में फेंक कर कुछ जलतरंग बनाना है, एक खेल करीब पौने घंटे तक उसे बहलाए है. चारो तरफ खिले फूल है. शाम धीरे धीरे उतर रही है...

अन्धेरा ढलते ही डाउनटाउन लगभग अपने पूरे शबाब पर है, रोशनी की झिलमिल से नदी भरी है, अब वो दिनवाली हरी नदी नहीं है, कुछ और है, अँधेरे उजाले का कोई आकर्षक खेल..... 
कुछ ४५ मिनट  की नाव में घुमाई है, और एक के बाद एक  नाव इस वक्त नदी में घूम रही हैं. हम भी एक नाव में सवार है. लगातार माईक पर कुछ पोपुलर किस्म की चीज़े कंडक्टर बता रहा है. कुछ  रेस्तरां के आगे  अच्छे बैंड्स परफोर्म कर रहे है. एक  मीठा मेक्सिकन बैंड है, रेड इन्डियन संगीत की धुनें बजाता, बांसुरी की लम्बी मीठी तान....

सेन अंतोनियो शहर पर गहरी छाप जर्मन, इटालियन और मेक्सिको की है, और सबका कुछ मिलजुल असर कुछ हद तक इस इलाके को बाकी शहर से अलग करता है. नदी है, संगीत है रोशनी है, एक खूबसूरत सी दीवाली है. नदी की सैर के बाद  बच्चे आईसक्रीम खाना चाहते है, एक जलेतो शॉप बगल में है, लगभग बंद होने वाली है, दुकानदार हमारी अंग्रेज़ी के जबाब लगातार इटेलियन में देता है, हमारे वेनिस  में रहने का भ्रम बनाए रखता है. टूरिस्ट अट्रेक्शन के लिए संजोया गया  बहुत से कोनों में से एक कोना ये भी है बहुत बड़ी बदसूरत एकसार  दुनिया के बीच. एक भ्रम...

टेक्सास समय हमारे ओरेगन के समय से दो घंटे आगे है, इसी असर में सुबह तीन बजे नींद खुल गयी है. होटल डरुरी के पांचवी मंजिल की बालकोनी से दिखता नदी नगर अँधेरे के कैनवस पर जगमगा रहा है. लगभग शांत.   सारा शहर शांत, सारे बजते हुये आर्केस्ट्रा, चलती हुयी नावे सब सोने गयी. बीच में सड़क पर रह रह कर  कोई कार गुज़रती है. रात के इस पहर  छिटकती रोशनी की एक परत  नदी पर बिछी है. अभी अप्रैल की कुछ नर्म, गुनगुनी, आद्र, अलसाई, हवा है.  मन करता है इस शहर में उम्र बीत जाय, न भी बीते तो कुछ साल रहा जाय. बचपन और किशोरवय की बहुत सी रातें नैनीताल की झील और उसमे पड़ती रोशनी को देखते बीती थी. सन्नाटे, रोशनी और पानी का अजब ज़ादू, कितना पहचाना. सुबह हो गयी है, इमेल करते, कुछ पढ़ते हुये, और कम से कम एक बार नदी किनारे फिर पैदल घूमे की इच्छा सर उठाती है. बच्चे अपने पापा के साथ स्वीमिंग पुल जाना चाहते है, मुझे दो घंटे का वक़्त है. इस अलसुबह कोई दुकान नहीं खुली, कुर्सिया रेस्तरा  के भीतर और बाहर उल्टी पड़ी है, कोई नहीं है दूर दूर तक सुबह की शांती और कुछ वीरानापन है, कुछ वैसा ही जैसे किसी शादी के निपट जाने के बाद अगले दिन लड़की के माता पिता का घर पर होता होगा, या नैनीताल में कोलेज इलेक्शन के अगले दिन केम्पस में होता था. कुछ वैसा भी जैसे दीवाली की अगली सुबह छोटे पहाडी कस्बों में होता था, हमारे बचपन के दिनों में, घर नए सिरे से साफ़ करना, और पडौसी, मित्र परिचितों के घर के लिए प्रसाद की छोटी छोटी पोटली माँ  का सुबह बनाते रहना. और बाकी लोगों का देर तक सोते रहना. सर पर घाम का चढ़ आना...

सड़क पर दुकाने है, ढ़ेर से म्यूजियम है, बहुत छोटी छोटी पर्यटक शहर की दुकाने है, खासकर मेक्सिको के बने क्राफ्ट से भरी. लगभग सब एक जैसी. एक दुकान के भीतर एक अधेड़ स्पेनिश औरत और उसकी किशोरवय की लड़की है, माँ सिर्फ स्पैनिश समझती है. कुछ बहुत ख़ास मिठास लिए माँ का चेहरा है, कुछ देर स्पैनिश में बोलती है. जबाब मैं दे नहीं सकती पर इतना समझ आता है कि सामान दिखा रही है. मुझे झल्लाहट अब  नहीं होती कि लोग मुझे मौक़ा दिए बगैर स्पैनिश में बोलना शुरू करते है,  अब इतने सालों में अपनी सूरत के  फरेब की मैं आदी हो गयी हूँ. शर्म आती है कि अब तक स्पैनिश नहीं सीखी. ख़ैर उसे कहती हूँ कि स्पैनिश नहीं आती, कुछ दो चार शब्द भर आते है. पर कुछ अपनापन सा बनता है, उससे कहती हूँ कि कुछ तस्वीर ले लूं उसकी दुकान की, इजाज़त मिलती है हंसी खुशी. बच्चों के लिए टी शर्ट और अपने लिए मेक्सिकन सिल्वर के झुमके खरीदकर उसकी दुकान से निकलती हूँ....

बाकी  दूसरे टूरिस्ट शहरों की तरह, सेन अन्तानियो  शहर के भी दो चेहरे है. टूरिस्ट के लिए शहर का एक चेहरा है, खूबसूरत, मौज से भरा, जिसके रस को आख़िरी घूँट तक पी लेना है,  एक ललचाता बाज़ार जहाँ  ज़ल्दबाजी है, कुछ लूट की तरह  खरीददारी करनी  है.  शहर के बाशिंदों के लिए दूसरा चेहरा, पर्यटक वाले चेहरे का विलोम. ये चेहरे नैनीताल, मसूरी, श्री रंगपट्टनम, वृन्दावन से लेकर नायग्रा फ़ॉल्स, और हर टूरिस्ट स्पोट पर लगातार दिखते है, पर्यटक भीड़ के चेहरे, और होटल के शीशे साफ़ करती, कमरे साफ़ करती, औरतों के चेहरे, दुकान के भीतर बैठे चेहरे, पूरी सर्विस कम्युनिटी  के चेहरे जिसपर ये पर्यटन उधोग टिका है.  इस विलोम पर कितनी दफ़े अटक जाती हूँ.  पर्यटक की मानसिकता जब कभी सर उठाती है, उसे दूर धकेलती हूँ.  बिना किसी लालच के, बिना लूट की मानसिकता के , इस शहर में घूमना है, इसे थोड़ा सा जानना है... थोड़ा अपने साथ बैठ लेना है....  

4 comments:

  1. मैं पढ़ता रहा और आपके साथ मैंने भी ये शहर घूम लिया... बहुत सुन्दर वृतांत है...

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  2. अच्छा लिखा हुआ …पढ़कर अच्छा लगा …ख़ासतौर पर नदी की बात

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  3. बहुत ही आकर्षक और प्रेरक यात्रा-वृतांत है. खासकर, पर्यटक शहरों के दो चेहरों की जो बात कही गयी है, उसे पढ़कर लगा कि पूरी दुनिया में स्थानीय व्यक्ति की हालत एक जैसी है.

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