एडवेंचर के भीतर जाना कुछ समय के लिए ब्लेक एंड व्हाईट के जमाने वाले स्पार्क, केप्टन कर्क के स्टारट्रेक में जाने जैसा है. एक बीतगए की भावना फट से सर उठाती है. कुछ वैसे ही जैसे बीस पच्चीस साल के बाद मिला कोई बच्चा अचानक जवान होकर सामने आता है, और उस बचपने का जिसे हम पहचानते होते, कोई मेल नहीं बैठता. पर अपनी असमंजस के बीच भी स्मृति के जुड़े तार कुछ मन को भिगोते है. बचपन के दिनों में कोई एपीसोड स्टारट्रेक का मिस करने का मतलब बहुत कुछ छूट जाना होता..., उन दिनों अंग्रेजी बिलकुल समझ नहीं आती थी, कुछ पता नहीं रहता कि बात क्या हो रही है. पर बोलती फिल्म को मौन फिल्म की तरह देखकर कुछ कहानी बन जाती थी.
बाद के सालों में २००४ तक नियमित रूप से हर रात स्टारट्रेक-वोयाजर देखती रही. स्टारट्रेक या फिर J. R. R. Tolkien की लिखीThe Fellowship of the Ring, The Two Towers, and The Return of the King .जिसे उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखना शुरू किया था, को कुछ हद तक सिम्बोलिक रूप में इस तरह भी देखा जाता रहा है कि यूरोप और एशिया के मुल्कों का समाजवाद अंतत: एकरूपता लाएगा, और व्यक्ति के पास, सभ्यता के पास भी गर्व करनेवाली जो ख़ास बातें है वों ख़त्म हो जायेगी. न सिर्फ आज़ादी, और अभिव्यक्ति बल्कि रचनाशीलता भी, इतिहास भी...., सो स्टारट्रेक-वोएजर इंडीविज्वलिज्म और कलेक्टिव (बोर्ग) की कभी ख़त्म न होने वाली लड़ाई का प्लाट है. एक ऑनस्क्रीन कोल्डवार. ये सब फिर बाद की बात हुयी. जिन दिनों या कि अब भी कभी स्टार ट्रेक देखने का मौक़ा मिला, तो उसे किसी दूसरे इमोशनल प्लेन पर देखने का मेरा आग्रह होगा, उसका मजा होगा. फिर जैसे टेक्नोलोजी डेटेड होगी, हमारी जानकारी में इजाफे होंगे, वोएजर भी बीती और बहुत पीछे छूटी बात होगा. कुछ वैसे ही जैसे २५-३० साल बाद भी याद रहता है कि बचपन के दिनों में ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट और केरोमल की टॉफी ताउजी लाते थे. कोई दोस्त हॉस्टल के दिनों कितना मीठा गाना गाती थी. ऐसी ही मिठास के साथ स्टार ट्रेक की याद रहेगी.
वोएजर की मैं कैथरीन या सेवेन आफ नाइन मैं न हुयी, पर लगता है बहुत करीब से बोर्ग से रोज़ सामना होता है, बोर्ग का नाम आज ग्लोबलाईजेशन है.....सब शहरों को, भाषाओं को, सभ्यताओं की विशेष पहचान को मिटाता ..... सब कुछ एकसार करता हुआ ...
बेहतरीन...
ReplyDeleteliked it immensely....beautifully described... ये समरसता का एहसास, ये बोर करने वाली एकरूपता, ये शहरों से छिनती हुई पहचान.... दिखने तो लगा है असर इसका भारत में भी. सेक्टर्स में बनते हुए शहर और माल में सिमटते बाज़ार ....
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