टेक्सास १७वी स्टेट हुयी अमेरिका की जिसे कुछ नापने का मौक़ा मिला, जितना ८-१० दिन में हो सकता है . दूर दूर तक खुला समतल मैदान और वैसा ही सर के ऊपर आसमान भी. अच्छी सड़के, अनगिनत फ्लाईओवर्स एक के बाद एक, कितना लोहा, कितना सीमेंट लगातार. माने सभी बड़े अमरीकन शहरों के जैसा, और अब दुनिया के बहुत से दूसरे शहरों जैसा भी. शहर के भीतर और उसके बाहर जुड़े कई दूसरे शहरों तक लगातार गाड़ी में बैठे हाईवे में दिन गुजर सकते है, शायद जीवन भी, घर बाज़ार और काम. सीमेंट का स्लेटीपन, जाने पहचाने एक जैसे दिखनेवाले छोटे बड़े बाज़ार, दुकाने, स्टोर्स, ...उनकी एकरसता, एक रंगरूप, हर शहर आपका पीछा करते है. ये साधारणपन, मॉस प्रोडक्शन का ख़्याल, और उसका इस तरह का विस्तार भीतर भीतर कुछ तोड़ता है. कहीं से कहीं जाना बेमतलब कर देता है. ग्लोबल लैंडस्केप अब हर शहर से उसका अपना कुछ जैसे छीन लेता है, एक मायने में पहचान भी. बहुत सोचकर भी ऐसा कुछ दिखता नहीं है कि कहूँ कि ये ह्यूस्टन शहर की याद है. होने को कितने ढ़ेर से म्यूजियम है, शायद बच्चों के साथ सबको देखना मुमकिन न होगा. एक बढ़िया एक्वेरीयम दिखा, लिंडन जोनसन स्पेस सेंटर में एक दिन बीता, कुछ सपनों की कुछ देर को भरपाई, स्पेशशिप के भीतर जाने का अनुभव, नासा की घुमाई, मिसन कंट्रोल रूम की दिखाई.... नासा के केम्पस में बाहर से सारी बिल्डिंग्स आम माचिस की डिब्बी वाली डिजायन की है. बहुत से बच्चों के खेलने वाले खेल अमूमन हर सायंस सेंटर में है. नासा की ख़ास बात कुछ पुराने स्पेसशिप एडवेंचर, सेटर्न, को रूबरू देख लेना, छू लेना, और जी लेना कल्पना में ही सही उनकी एतिहासिक यात्राएं, और उपलब्धियां जो अभूतपूर्व है, मनुष्य जाति के लिए.
एडवेंचर के भीतर जाना कुछ समय के लिए ब्लेक एंड व्हाईट के जमाने वाले स्पार्क, केप्टन कर्क के स्टारट्रेक में जाने जैसा है. एक बीतगए की भावना फट से सर उठाती है. कुछ वैसे ही जैसे बीस पच्चीस साल के बाद मिला कोई बच्चा अचानक जवान होकर सामने आता है, और उस बचपने का जिसे हम पहचानते होते, कोई मेल नहीं बैठता. पर अपनी असमंजस के बीच भी स्मृति के जुड़े तार कुछ मन को भिगोते है. बचपन के दिनों में कोई एपीसोड स्टारट्रेक का मिस करने का मतलब बहुत कुछ छूट जाना होता..., उन दिनों अंग्रेजी बिलकुल समझ नहीं आती थी, कुछ पता नहीं रहता कि बात क्या हो रही है. पर बोलती फिल्म को मौन फिल्म की तरह देखकर कुछ कहानी बन जाती थी.
बाद के सालों में २००४ तक नियमित रूप से हर रात स्टारट्रेक-वोयाजर देखती रही. स्टारट्रेक या फिर J. R. R. Tolkien की लिखीThe Fellowship of the Ring, The Two Towers, and The Return of the King .जिसे उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखना शुरू किया था, को कुछ हद तक सिम्बोलिक रूप में इस तरह भी देखा जाता रहा है कि यूरोप और एशिया के मुल्कों का समाजवाद अंतत: एकरूपता लाएगा, और व्यक्ति के पास, सभ्यता के पास भी गर्व करनेवाली जो ख़ास बातें है वों ख़त्म हो जायेगी. न सिर्फ आज़ादी, और अभिव्यक्ति बल्कि रचनाशीलता भी, इतिहास भी...., सो स्टारट्रेक-वोएजर इंडीविज्वलिज्म और कलेक्टिव (बोर्ग) की कभी ख़त्म न होने वाली लड़ाई का प्लाट है. एक ऑनस्क्रीन कोल्डवार. ये सब फिर बाद की बात हुयी. जिन दिनों या कि अब भी कभी स्टार ट्रेक देखने का मौक़ा मिला, तो उसे किसी दूसरे इमोशनल प्लेन पर देखने का मेरा आग्रह होगा, उसका मजा होगा. फिर जैसे टेक्नोलोजी डेटेड होगी, हमारी जानकारी में इजाफे होंगे, वोएजर भी बीती और बहुत पीछे छूटी बात होगा. कुछ वैसे ही जैसे २५-३० साल बाद भी याद रहता है कि बचपन के दिनों में ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट और केरोमल की टॉफी ताउजी लाते थे. कोई दोस्त हॉस्टल के दिनों कितना मीठा गाना गाती थी. ऐसी ही मिठास के साथ स्टार ट्रेक की याद रहेगी.
स्टार ट्रेक से कुछ नयी डिस्कवरी नहीं होती थी, ज्यादातर ह्युमन इमोशनस या बिहेवियर को एक दूसरे लैंडस्केप में देखना होता, अपने पहचाने परिवेश और समय के बाहर देखना होता. एक स्पेसशिप और जहाँ वों लैंड करता, घर का रास्ता ढूंढते हुये पूरे अन्तरिक्ष की टहल करता उसमे जीना होता. घर लौटना सपने में होता, सच में रोज़ कहीं से कहीं निकलना होता... और बोर्ग के साथ मुठभेट होती जो सब कुछ एकरसता में समेट लेता, हर पहचान को रौंदता. मेरे अपने जीने की तरह भी कुछ मायनों में. एक प्रवासी जीवन.एडवेंचर के भीतर जाना कुछ समय के लिए ब्लेक एंड व्हाईट के जमाने वाले स्पार्क, केप्टन कर्क के स्टारट्रेक में जाने जैसा है. एक बीतगए की भावना फट से सर उठाती है. कुछ वैसे ही जैसे बीस पच्चीस साल के बाद मिला कोई बच्चा अचानक जवान होकर सामने आता है, और उस बचपने का जिसे हम पहचानते होते, कोई मेल नहीं बैठता. पर अपनी असमंजस के बीच भी स्मृति के जुड़े तार कुछ मन को भिगोते है. बचपन के दिनों में कोई एपीसोड स्टारट्रेक का मिस करने का मतलब बहुत कुछ छूट जाना होता..., उन दिनों अंग्रेजी बिलकुल समझ नहीं आती थी, कुछ पता नहीं रहता कि बात क्या हो रही है. पर बोलती फिल्म को मौन फिल्म की तरह देखकर कुछ कहानी बन जाती थी.
बाद के सालों में २००४ तक नियमित रूप से हर रात स्टारट्रेक-वोयाजर देखती रही. स्टारट्रेक या फिर J. R. R. Tolkien की लिखीThe Fellowship of the Ring, The Two Towers, and The Return of the King .जिसे उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखना शुरू किया था, को कुछ हद तक सिम्बोलिक रूप में इस तरह भी देखा जाता रहा है कि यूरोप और एशिया के मुल्कों का समाजवाद अंतत: एकरूपता लाएगा, और व्यक्ति के पास, सभ्यता के पास भी गर्व करनेवाली जो ख़ास बातें है वों ख़त्म हो जायेगी. न सिर्फ आज़ादी, और अभिव्यक्ति बल्कि रचनाशीलता भी, इतिहास भी...., सो स्टारट्रेक-वोएजर इंडीविज्वलिज्म और कलेक्टिव (बोर्ग) की कभी ख़त्म न होने वाली लड़ाई का प्लाट है. एक ऑनस्क्रीन कोल्डवार. ये सब फिर बाद की बात हुयी. जिन दिनों या कि अब भी कभी स्टार ट्रेक देखने का मौक़ा मिला, तो उसे किसी दूसरे इमोशनल प्लेन पर देखने का मेरा आग्रह होगा, उसका मजा होगा. फिर जैसे टेक्नोलोजी डेटेड होगी, हमारी जानकारी में इजाफे होंगे, वोएजर भी बीती और बहुत पीछे छूटी बात होगा. कुछ वैसे ही जैसे २५-३० साल बाद भी याद रहता है कि बचपन के दिनों में ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट और केरोमल की टॉफी ताउजी लाते थे. कोई दोस्त हॉस्टल के दिनों कितना मीठा गाना गाती थी. ऐसी ही मिठास के साथ स्टार ट्रेक की याद रहेगी.
वोएजर की मैं कैथरीन या सेवेन आफ नाइन मैं न हुयी, पर लगता है बहुत करीब से बोर्ग से रोज़ सामना होता है, बोर्ग का नाम आज ग्लोबलाईजेशन है.....सब शहरों को, भाषाओं को, सभ्यताओं की विशेष पहचान को मिटाता ..... सब कुछ एकसार करता हुआ ...
बेहतरीन...
ReplyDeleteliked it immensely....beautifully described... ये समरसता का एहसास, ये बोर करने वाली एकरूपता, ये शहरों से छिनती हुई पहचान.... दिखने तो लगा है असर इसका भारत में भी. सेक्टर्स में बनते हुए शहर और माल में सिमटते बाज़ार ....
ReplyDelete