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Apr 1, 2011

इन्द्रधनुष के पीछे-पीछे

 Note: 14 Jun 2014:   आज अनुराधा नहीं रहीं, उनकी याद हमेशा रहेगी  .... 

२-३ सालों से अनुराधा का ब्लॉग बीच बीच में पढ़ती रही हूँ. उनसे पहचान ब्लॉग के जरिये ही हुयी, और पिछले साल दिल्ली में मुलाक़ात भी. तभी मुझे अनुराधा ने अपनी लिखी किताब  इन्द्रधनुष के पीछे-पीछे  भेंट की थी. दिन भर की भागदौड़ के बीच और एयरपोर्ट समय से पहुँचने के बीच कुछ घंटेभर से थोड़ा कम समय मैंने अनुराधा के घर पर बिताया.  छोटी सी मुलाक़ात में ये नहीं लगा की पहली बार मिलना हुआ. कभी भी फोन पर या इमेल पर भी अनुराधा का व्यवहार हमेशा बहुत इसी तरह रहा. आज सात महीनों के बाद एक सांस में बैठकर अनुराधा की किताब पढी. किताब की भाषा भी बेहद सरल तरल, बातचीत की भाषा है, किसी तरह का कोई खिलवाड़  उसमे नहीं है, पर जो जानकारी है, स्तन कैसर से उभरने की व्यक्तिगत यात्रा है, वो कई मायनों में सघन है, ज़रूरी है, और बहुत से लोगों के लिए संबल बनी रहेगी.
 जानकारी से अलग जो दो बाते बहुत ज़रूरी बाते सिर्फ केंसर मरीज़ के लिए ही नहीं बल्कि दुसरे कई मरीजों के लिए और यहाँ तक कि शारीरिक रूप से स्वस्थ परन्तु विपरीत परिस्थितियों से लड़ते किसी भी व्यक्ति का सबक है.  पहली बात अपनी आशा बनाए रखना, जितना भी हो सके अपनी कोशिश को नहीं छोड़ना, कम से कम ये जो जीवन मिला है उसका सम्मान करना. दूसरी बात ये कि परिवेश, परिजन और मित्र, इन सबकी भूमिका, किसी को मौत के पुल के इस पार खींच सकती है, और  अगर मरीज़ की खुशहाली वहां प्राथमिकता नहीं है तो कई बहुमूल्य जीवन ख़त्म हो जाते है. और इस मायने में हम सब जाने अनजाने एक दूसरे से जुड़े है, और जाने अनजाने कई दुसरे जीवन है हमारे साथ बंधे हुए. , विद्वान् न बने, बहुत अमीर न बने, पर अपने जीवन से जूझते हुए भी थोड़े से मनुष्य हम बने रहे.  इस किताब को तकनीकी जानकारी से ज्यादा हम सबके थोड़े से मनुष्य बने रहने में उर्वरक की तरह देखती हूँ.




इन्द्रधनुष के पीछे-पीछे

Author : आर. अनुराधा
Our Price$ 7.00 why is our price higer than the list price
ISBN8183610064
ISBN139788183610063
PublisherRadha Krishna Prakashan
Published In2007
BindingHardback

4 comments:

  1. "विद्वान् न बने, बहुत अमीर न बने, पर अपने जीवन से जूझते हुए भी थोड़े से मनुष्य हम बने रहे"

    इससे अच्छा और क्या.. अनुराधा जी की इस किताब के बारे में पहले भी पढा है बस अभी तक पढने का मौका नहीं मिला.. जीवन की आपाधापी में जीवन को जीतने वालों के बारे में जानना शायद जीने को और महत्वपूर्ण बनाता होगा।

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  2. किताब किसने प्रकाशित की है और मूल्‍य आदि की जानकारी भी दें तो कई अन्‍य लोगों को भी फायदा होगा।

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  3. राजेश जी लिंक और किताब के डिटेल्स जोड़ दिया है.

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  4. saral snehi anuradha se hum bhi mil chuke hain...aap dono ki bhaint vaarta achchha lagaa

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